सुप्रीम कोर्ट (फोटो-सोशल मीडिया)
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असम पुलिस पर लगे 171 कथित फर्जी एनकाउंटर के आरोपों की निष्पक्ष और गहन जांच के आदेश दिए हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले को गंभीर मानते हुए असम मानवाधिकार आयोग को निर्देश दिया कि वह एक सार्वजनिक नोटिस जारी करे और पीड़ितों या उनके परिजनों से गोपनीय तरीके से आवेदन आमंत्रित करे। यह सुनिश्चित किया जाए कि पीड़ितों और उनके परिवारों को निष्पक्ष रूप से अपनी बात रखने का अवसर मिले।
कोर्ट ने कहा कि यह आरोप कि कुछ घटनाएं फर्जी एनकाउंटर हो सकती हैं, यह बेहद गंभीर हैं और अगर साबित हो जाता है तो ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन माने जाएंगे। हालांकि यह भी उतना ही संभव है कि निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के बाद कुछ मामले कानूनन उचित और जरूरी पाए जाएं। यह निर्देश एक जनहित याचिका के बाद आया।
‘निर्दोषों को मारा गया होत जवाबदेही तय हो’
याचिका में आरोप लगाया गया कि असम सरकार ने 2014 के पीयूसीएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया। दिशा-निर्देशों ने पुलिस मुठभेड़ों की जांच के लिए आधार तैयार किया था। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद यासीन जव्वादर द्वारा दाखिल याचिका में प्रस्तुत मामलों में से कुछ की स्वतंत्र जांच की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन संकलित आंकड़ों के आधार पर समग्र रूप से कोई निर्देश देना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि अधिकांश मामलों में तथ्यों की सही स्थिति स्पष्ट नहीं है, कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह जिम्मेदारी असम मानवाधिकार आयोग की होगी कि वह सभी मामलों की निष्पक्षता से पड़ताल करे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हर मामले को स्वतंत्र रूप से देखा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई निर्दोष मारा गया हो तो उसके लिए जवाबदेही तय हो सके।
सरकारी अधिकारियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग अक्षम्य
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह मामला असम में पुलिस मुठभेड़ों से संबंधित है। सरकारी अधिकारियों की ओर से शक्ति का दुरुपयोग या गैरकानूनी बल का प्रयोग अक्षम्य है। केवल केस फाइलें जमा करना अदालत के हस्तक्षेप को उचित नहीं ठहराता है, क्योंकि इससे दोषी को बचाया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने 117 मुठभेड़ों की सूची प्रस्तुत की, लेकिन कोर्ट ने जोर दिया कि इन्हें पूरी तरह से जांच के बिना झूठा नहीं माना जा सकता। जज ने कहा, ‘वास्तविक मामलों की पहचान करना महत्वपूर्ण है। जनहित याचिकाएं प्रक्रियात्मक सुरक्षा की जगह नहीं ले सकती हैं। न्याय के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।’
सरकार से कहा, जांच में दे पूरा सहयोग
कोर्ट ने असम सरकार को निर्देश दिया कि वह जांच में पूरा सहयोग दे और कोई भी संस्थागत बाधा आयोग की कार्यवाही में न आने दे। साथ ही कोर्ट ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को पीड़ित परिवारों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया।
2014 के दिशानिर्देशों की स्पष्ट रूप से अनदेखी
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के दिशानिर्देशों की स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई है. जनहित याचिका में जनवरी 2023 के गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें असम पुलिस मुठभेड़ों के बारे में चिंताओं को खारिज कर दिया गया था. याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय को बताया था कि मई 2021 से लेकर रिट याचिका दायर होने तक कथित तौर पर 80 से अधिक फर्जी मुठभेड़ हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 28 मौतें हुईं। असम सरकार के हलफनामे में मई 2021 से अगस्त 2022 तक 171 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 56 मौतें और 145 घायल हुए।
यह है मामला
यह आदेश उस याचिका पर आया है, जिसमें मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच हुई 171 मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि इनमें से कई फर्जी मुठभेड़ थीं और सुप्रीम कोर्ट के 2014 के पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में तय दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। हालांकि, असम सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि सभी मुठभेड़ों में निर्धारित दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन किया गया है। असम सरकार के हलफनामे के अनुसार, 171 घटनाओं में 56 लोगों की मृत्यु हुई थी, जिनमें से 4 मौतें हिरासत में हुईं, और 145 लोग घायल हुए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2023 में इस मामले को बहुत गंभीर बताया था और राज्य सरकार से विस्तृत जानकारी मांगी थी।