मुन्ज्या फिल्म पोस्टर (Photo Credits: Instagram)
फिल्म: मुन्ज्या
कास्ट: अभय वर्मा, शर्वरी वाघ, मोना सिंह, सत्यराज और सुहासिनी जोशी
निर्देशक: आदित्य सरपोतदार
रनटाइम:2 घंटे 3 मिनट
जॉनर: हॉरर कॉमेडी
रेटिंग्स:3.5 स्टार्स
कहानी:ये कहानी है दो अलग युवकों को जो एक ही परिवार से आते हैं। सबसे पहले कहानी शुरू होती है मुन्ज्या नाम के एक ऐसे ब्राह्मण बालक से जो मुन्नी नाम की अपने से 7 वर्ष बड़ी लड़की से प्रेम कर बैठता है। मुन्ज्या की ये जिद्द इतनी भयंकर रूप ले लेती है कि वो हर हाल में मुन्नी को पाना चाहता है। लेकिन मुन्नी की शादी कहीं और करा दी जाती है और यहां उस बालक का मुंडन कराया जाता है। मुन्नी को प्राप्त करने के लिए वो चेटूकवाड़ी नामके के उस भयावह इलाके में जाता है जहां वो तंत्र विद्या और काला जादू की मदद से मुन्नी को अपने वश में करने का प्रयास करता है। लेकिन इस दौरान कुछ अनहोनी होती है और उस ब्राह्मण बालक की मृत्यु हो जाती है। अब वो बच्चा एक ब्रम्हराक्षस के रूप में जन्म लेता है और अपनी अधूरी इच्छा को पूरी करने के लिए अपने घर की आनेवाली पीढ़ी को परेशान करता है। इसके बाद ये कहानी है बिट्टू (अभय वर्मा) नाम के एक बेहद भोलेभले लड़के की जो एक सख्त मां (मोना सिंह) की देखरेख में पला बड़ा है लेकिन उसकी दादी (सुहासिनी जोशी) उसके दिल को समझती है और उसे हमेशा सपोर्ट करती है। बिट्टू अपने गांव जाता है जहां उसका सामना मुन्ज्य नाम के अब इस ब्रम्हराक्षस से होता है और वो उसके खूब परेशान करता है। मुन्ज्या उसे इस कदर परेशान करता है कि वो अब उसकी दोस्त बेला (शर्सेवरी वाघ) शादी करने के लिए उसपर दिन रात दवाव डालता है। लेकिन अंत में इन बातों से तंग आकर बिट्टू मुन्ज्या को सबक सिखाता है और जान की बाजी लगाकर अपना और बेला का पीछा उस ब्रम्हराक्षस से छुड़ाता है।
अभिनय: अभय वर्मा इस फिल्म की जान हैं। जिस तरह से वे एक डरे और सहमे हुए लड़के की भूमिका निभाते हैं, इस बात का थोड़ा भी अंदाजा नहीं मिलता कि वो एक्टिंग कर रहे हैं। वे पूरी तरह से अपने रोल में ढले हुए नजर आए। उनके बाद मोना सिंह ने यहां एक मां की भूमिका में हमेशा की तरह हमें इम्प्रेस किया। फिल्म में शर्वरी के लिए उतना काम या कहें स्क्रीन स्पेस नहीं है। अधिकांश सीन्स में वो केवल एक सेंटर ऑफ अट्रेक्शन के रूप में एक खूबसूरत महिला के किरदार में दिखी जोकि बिट्टू का बचपन का प्यार भी है। फिल्म में अभिनेत्री सुहान्सिनी जोशी ने यकीनन प्रभावशाली और शानदार काम किया है। कुलमिलाकर सभी कलाकारों ने यहां अपना बेहतरीन परफॉर्मेंस दिया है।
म्यूजिक: क्योंकि ये एक हॉरर कॉमेडी फिल्म है, इसका बैकराउंड म्यूजिक बेहद मायने रखता है और फिल्म के मेकर्स ने यकीनन इसपर बढ़िया काम किया है। कुछ डरावने और चौंका देने वाले सीन्स में जिस प्रकार से साउंड इफ़ेक्ट का प्रयोग किया गया है कि वो सीन्स इ साथ पूरी तरह से न्याय करता है। इसके अलावा गानों की बात करें तो इसके कुछ गाने जरूर हैं लेकिन उनमें वो बात नहीं कि फिल्म देखकर सिनेमाघरों से बाहर आने के बाद भी वो आपके जहां में बस जाए.
फाइनल टेक: इस फिल्म के लेखक योगेश चांदेकर ने एक हटके और अलग कहानी पेश करने का प्रयास किया है जो दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाती है। हालांकि इसके स्क्रीनप्ले राइटर निरेन भट्ट को इस पर और मजबूती से काम करने की जरुरत थी। फिल्म का पहला हिस्सा जहां हमें एंटरटेन करता है वहीं कुछ जगहों पर हमें फिल्म में दिखाए गए राक्षस से मानों डर का अहसास ही नहीं होता। हॉरर और कॉमेडी फिल्मों के लिए प्रसिद्ध मैडॉक फिल्म्स ने एक ऐसी कहानी लाइ है जिसको बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर वर्ग के लोग देखेंगे लेकिन इसकी स्टोरी टेलिंग कुछ जगहों पर ढीली मालूम होती है जिसके चलते इसकी कहानी को इंटरवल के बाद जरुरत से अधिक खींचा गया है। कुलमिलाकर अपने हॉरर एलिमेंट और कलाकारों के शानदार अभिनय के चलते ये फिल्म सिनेमाघरों में देखने योग्य है जो आपो डराने के साथ ही हंसाने का काम भी करेगी।