ST में बंजारा समुदाय का विरोध (सौजन्य-नवभारत)
Yavatmal News: सरकार को बंजारा, धनगर या अन्य किसी भी जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं करना चाहिए, इस प्रमुख मांग को लेकर शुक्रवार, 10 अक्टूबर को जिला कलेक्ट्रेट पर ‘जनआक्रोश क्रांति महामोर्चा’ निकाला गया। इस महामोर्चे में जिलेभर से लाखों आदिवासी समाजबंधु शामिल हुए। सड़कों पर लगभग 2 से 3 किलोमीटर तक मोर्चे की कतार दिखाई दी।
मोर्चे के माध्यम से यह स्पष्ट चेतावनी दी गई कि बंजारा समाज की आदिवासी आरक्षण में घुसपैठ किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके बाद आदिवासी समाज बंधूओं की तरफ से किनवट के विधायक भीमराव केराम, आर्णी पांढरकवडा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक राजू तोडसाम व अन्य आदिवासी जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी को निवेदन दिया गया। स्थानीय पोस्टल ग्राउंड से इस महामोर्चे की शुरुआत हुई।
इसके बाद कामगार चौक, हनुमान आखाड़ा, इंदिरा गांधी मार्केट, पाँच कंदील चौक, नेताजी चौक, संविधान चौक होते हुए एलआईसी चौक तक यह मोर्चा गया और पुनः पोस्टल ग्राउंड पर इसका समापन हुआ। इस अवसर पर आदिवासी आरक्षण क्रिया समिति के शिष्टमंडल ने जिलाधिकारी को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। उसके बाद पोस्टल ग्राउंड पर सभा आयोजित की गई।
ST में बंजारा समुदाय का विरोध (सौजन्य-नवभारत)
हैदराबाद गैजट का आधार लेकर सरकार ने 2 सितंबर 2025 को एक शासन निर्णय जारी किया, जिसके तहत मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र देने की घोषणा की गई। इसी गैजट का हवाला देते हुए राज्यभर में बंजारा समाज अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है। इस मांग को आदिवासी समाज ने असंवैधानिक और गलत बताते हुए विरोध जताया।
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इस महामोर्चे में आदिवासी विकास मंत्री अशोक उईके, विधायक राजू तोडसाम, किनवट के विधायक भीमराव केराम, पूर्व मंत्री शिवाजीराव मोघे, आदिवासी आरक्षण क्रिया समिति के दशरथ ताडाम, दशरथ मडावी, राजू चांदेकर, किरण कुमरे, सुरेश चिंचोलकर, एडवोकेट प्रमोद घोडाम, मधुसूदन कोवे, देवेंद्र आत्राम, सुवर्णा वरखड़े, वसंतराव कन्नाडे और रमेश भिसनकर आदि प्रमुख उपस्थित थे।
बंजारा समाज का दावा है कि वे 1920 से अनुसूचित जनजाति में हैं, लेकिन आदिवासी समाज ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया। उनका कहना है कि 1920 में अनुसूचित जनजाति शब्द का अस्तित्व ही नहीं था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत 1950 में राष्ट्रपति के आदेश से ही अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग शुरू हुआ।
स्वतंत्रता से पहले समाज को तीन वर्गों में बांटा गया था। दलित वर्ग, प्राचीन व वन्य जातियां और अन्य पिछड़ा वर्ग”। “वंडरिंग ट्राइब” यानी भटकी जनजाति, आदिवासी नहीं थी। आदिवासियों की परंपराएं, संस्कृति, धार्मिक आचार-विचार पूरी तरह अलग हैं और वे हिंदू नहीं हैं। इसके विपरीत बंजारा समाज की “हिंदू जाति” के रूप में पंजीयन है, इसलिए वे आदिवासी नहीं हैं।