
फसल में लगाई आग (सौजन्य-नवभारत)
Ashtee Farmers Distress: देश का अन्नदाता कहलाने वाला किसान आज अनेक संकटों के भंवर में फंस गया है। हर वर्ष की तरह इस बार भी अतिवृष्टि और फसल की नाकामी ने उसकी कमर तोड़ दी है। हालात ऐसे हैं कि किसान ज़िंदा होते हुए भी मृत जीवन जीने को मजबूर है। इस वर्ष हुई अतिवृष्टि ने ग्रामीण इलाकों में तबाही मचा दी।
सोयाबीन की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। जब किसानों को यह एहसास हुआ कि फसल से मड़ाई का खर्च भी नहीं निकलेगा, तब यहां के दो किसानों ने निराशा में अपने खेतों की फसल को आग के हवाले कर दिया। आष्टी तहसील के समीर हरिभाऊ वाघ ने अपने 10 एकड़ खेत की सोयाबीन की गंजी में आग लगा दी, जबकि कपिल रमेश भोरे ने अपने 2 एकड़ खेत की फसल जला दी।
इस घटना में दोनों किसानों को लाखों का नुकसान हुआ है। यह घटना दिल दहला देने वाली है। जिस फसल को किसान ने छोटे बच्चे की तरह सींचा, उसी को अपनी आंखों के सामने जलते देखना किसी भी किसान के लिए असहनीय पीड़ा है। नाकामी, कर्ज़ और निराशा से ग्रस्त किसान आज मानसिक रूप से टूट चुका है। अतिवृष्टि और बीमारियों के कारण इस वर्ष सोयाबीन का उत्पादन बहुत कम हुआ है।
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किसानों को उम्मीद थी कि मड़ाई से कुछ उपज निकल आएगी, परंतु अब यह स्पष्ट हो गया है कि दस एकड़ की फसल से एक थैला सोयाबीन भी नहीं निकलेगा। इस वर्ष की दिवाली किसानों के लिए अंधकारमय रही। फसल हाथ से चली गई, और सरकार की ओर से अतिवृष्टि राहत राशि भी किसानों के खातों में जमा नहीं की गई। जिससे किसान परिवारों की दिवाली चिंता और निराशा में बीती।
इस वर्ष खरीफ का सीजन पूरी तरह नष्ट हो गया है, और अब रबी की फसल का भविष्य भी अनिश्चित बना हुआ है। अगर सरकार ने अब भी किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दिनों में स्थिति विस्फोटक हो सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि आर्थिक रूप से टूट चुके किसानों को तुरंत राहत और सहायता प्रदान की जाए, ताकि देश का यह अन्नदाताअपने जीवन को फिर से आशा और सम्मान के साथ जी सके।






