पुणे पोर्शे कार हादसा (सोर्स: सोशल मीडिया)
पुणे: पिछले साल हुए पुणे पोर्शे हादसे नए पूरे महाराष्ट्र को झकझोर कर रख दिया था। इस हादसे को एक साल से अधिक का समय हो गया है। लेकिन पीड़ित परिवार आज भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं। आरोपी नाबालिग को लेकर अब एक बड़ा अपडेट सामने आया है। किशोर न्याय बोर्ड में 23 जून को इस मामले की सुनवाई हुई, जिसमें अभियोजन पक्ष ने अपनी मांग फिर से रखी।
पुणे में पोर्शे कार मामले में अभियोजन पक्ष ने किशोर न्याय बोर्ड (JJB) से 17 वर्षीय आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का अनुरोध किया है। साथ ही कहा कि उसने एक जघन्य कृत्य को अंजाम दिया है।
19 मई को कल्याणी नगर इलाके में नशे की हालत में पोर्शे कार चला रहे नाबालिग आरोपी ने दो लोगों को कथित तौर पर कुचल दिया। यह खबर देशभर में सुर्खियां बनी थी। इस घटना में मोटरसाइकिल पर सवार आईटी पेशेवर अनीश अवधिया और उसकी मित्र अश्विनी कोस्टा की मौत हो गयी थी।
पुणे पुलिस की उस याचिका को एक साल से अधिक समय हो गया है, जिसमें उसने आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का अनुरोध किया था और यह किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित है।
विशेष लोक अभियोजक शिशिर हिरे ने सोमवार को कहा कि पुणे पुलिस ने दुर्घटना के बाद किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष एक याचिका दायर की थी कि किशोर पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए। लेकिन बचाव पक्ष ने कई बार स्थगन की मांग की। बचाव पक्ष सुनवाई नहीं होने दे रहा था।
शिशिर हिरे ने बताया कि 23 जून को याचिका पर सुनवाई हुई। हमने मांग की कि किशोर पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए। अभियोजक ने कहा कि उन्होंने तर्क दिया कि किशोर द्वारा किया गया कृत्य जघन्य था क्योंकि न केवल दो लोगों को कुचलकर मार दिया गया था, बल्कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का भी प्रयास किया गया था।
विशेष लोक अभियोजक हिरे ने कहा कि मैंने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड सदस्यों का ध्यान अपराध की गंभीरता की ओर आकर्षित किया। मैंने दलील दी कि किशोर को पता था कि वह नशे की हालत में कार चलाकर दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है।
आरोपी किशोर के वकील प्रशांत पाटिल ने अभियोजन पक्ष की मांग का विरोध करते हुए शिल्पा मित्तल बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें जघन्य अपराध की परिभाषा बताई गई है।
पाटिल ने कहा कि अभियोजन पक्ष की याचिका सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है। हमने मांग की कि चूंकि दलील उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के विपरीत है, इसलिए यह स्वीकार्य नहीं है। किसी अपराध को जघन्य अपराध के रूप में परिभाषित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास एक धारा होनी चाहिए जिसमें न्यूनतम सजा 7 साल हो।
उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले में एक भी धारा नहीं है जिसमें न्यूनतम सजा सात वर्ष हो। पाटिल ने कहा कि जेजेबी को यह निर्धारित करने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन करना होगा कि क्या कानून के अनुसार किसी बच्चे के साथ वयस्क या नाबालिग के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए।
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि इस मामले में जेजेबी पहले ही ऐसा कर चुका है। उनके प्रारंभिक आकलन में यह सामने नहीं आया कि उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि आरोपी किशोर को पिछले साल 19 मई को दुर्घटना के कुछ घंटों बाद ही जमानत मिल गयी थी। उसकी जमानत की शर्तों में सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना भी शामिल था जिसे लेकर देशभर में लोगों का गुस्सा फूटा। इसके तीन दिन बाद उसे पुणे शहर में एक सुधार गृह भेजा गया।
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बंबई उच्च न्यायालय ने 25 जून 2024 को आरोपी लड़के को तुरंत रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा कि किशोर न्याय बोर्ड का उसे सुधार गृह भेजने का आदेश गैरकानूनी था और नाबालिग से संबंधित कानून को पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए।