अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस (कंसेप्ट फोटो-सोशल मीडिया)
नासिक: नासिक जिले में महायुति के वर्चस्व को देखते हुए आगामी जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों में महायुति के विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जानकारों का मानना है कि विधायकों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। चूंकि सबसे ज्यादा मंत्री और विधायक अजित पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस गुट के हैं, इसलिए उनकी असली परीक्षा होगी।
गट-गण संरचना कार्यक्रम की घोषणा के बाद प्रशासनिक स्तर पर काम शुरू हो गया है। नक्शे बनाने का काम हाथ में लिया गया है, और इसके अगले कुछ दिनों में पूरा होने की संभावना है। दूसरी ओर, राजनीतिक दलों के कार्यालयों में अभी तक चुनावी तैयारी दिख नहीं रही है। हालांकि, जिले के लगभग सभी विधायक महायुति के हैं, जिससे उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी। विधायकों के तौर पर उन्हें अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी।
अजित पवार गुट के सबसे अधिक 6 विधायक हैं। येवला मंत्री छगन भुजबल का निर्वाचन क्षेत्र है। इस क्षेत्र में शरद पवार गुट का अस्तित्व है, और ठाकरे की शिवसेना को मानने वाला भी एक बड़ा वर्ग है। इसलिए भुजबल के सामने अपने निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा गुटों से उम्मीदवार जिताने की चुनौती होगी। निफाड़ तालुका का नेतृत्व विधायक दिलीप बनकर के पास है, लेकिन ठाकरे की शिवसेना से अनिल कदम दो बार विधायक रह चुके हैं। प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में बनकर की कड़ी परीक्षा होगी।
मंत्री नरहर झिरवाल को दिंडोरी-पेठ निर्वाचन क्षेत्र में मंत्री के तौर पर अपनी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा जिला परिषद सदस्यों को जिताने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र में शरद पवार गुट के भास्कर भगरे और निष्ठावान सिपाही श्रीराम शेटे का प्रभाव है। कलवण-सुरगाणा निर्वाचन क्षेत्र में विधायक नितीन पवार को अपनी ताकत साबित करनी पड़ेगी।
नासिक रोड-देवलाली निर्वाचन क्षेत्र में पहले ठाकरे की शिवसेना का वर्चस्व रहा है, लेकिन फिलहाल अजित पवार गुट की विधायक सरोज आहिरे इस निर्वाचन क्षेत्र का नेतृत्व कर रही हैं। बबन घोलप को मानने वाला वर्ग और ठाकरे गुट की जड़ें इस क्षेत्र में गहरी जमी हुई हैं, इसलिए आहिरे को अपना वर्चस्व साबित करके दिखाना होगा। हमेशा विवादास्पद बयान देकर पार्टी को मुश्किल में डालने वाले कृषि मंत्री माणिक कोकाटे को ठाकरे गुट के सांसद राजाभाऊ वाजे से कड़ी टक्कर मिलेगी।
पिछली पंचवर्षीय चुनाव में वाजे ने ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार जिताकर ठाकरे गुट का वर्चस्व साबित किया था। खास बात यह है कि कोकाटे की बेटी सिमंतिनी कोकाटे को मामूली अंतर से जीत मिली थी। इगतपुरी-त्र्यंबकेश्वर से दूसरी बार विधायक बने हिरामन खोसकर को भी ज्यादा से ज्यादा जिला परिषद सदस्यों को जिताने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी।
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शहर में तीन विधायक वाली भाजपा के पूरे जिले में पांच विधायक हैं। फिर भी ग्रामीण इलाकों में पार्टी अभी तक अपनी जड़ें जमा नहीं पाई है। ऐसे में केदा आहेर जैसे जमीनी स्तर के पदाधिकारी भी दूर हो गए हैं, इसलिए सटाणा और चांदवड-देवला के विधायकों के भरोसे ही जिला परिषद चुनाव का दांव लगाना पड़ेगा। शिंदे गुट को एक मंत्री और एक विधायक के दम पर करिश्मा दिखाना होगा। वहीं, शरद पवार गुट को दो सांसदों के सहारे ही चुनाव मैदान में उतरना होगा। कांग्रेस का तो एक भी विधायक नहीं है, इसलिए इस पार्टी को पदाधिकारियों के दम पर ही मैदान में उतरना पड़ेगा।
विधायकों पर ज्यादा से ज्यादा जिला परिषद सदस्यों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, लेकिन खर्च अपनी जेब से करना होगा या पार्टी फंड उपलब्ध कराएगी, यह असली मुद्दा है। अगर विधायकों को अपनी जेब से खर्च करना होगा तो क्या वे वाकई ऐसा करेंगे, यह भी महत्वपूर्ण है।