
ऑरगन ट्रैफिकिंग (AI generated image)
Illegal Organ Trade India: कर्ज में डूबे चंद्रपुर के किसान रोशन सदाशिव कुड़े को कंबोडिया में किडनी निकलवा और बेचने वाले ‘लालची-धनलोलुप’ साहूकार की सुर्खियां 24 घंटे बीतने के बावजूद राज्य की महायुति सरकार के जिम्मेदारों की नींद नहीं खुलवा सकी हैं। दिल्ली तो खैर काफी दूर है जो संसद के शीतकालीन सत्र के कोलाहल ही से गुलजार है।
वहां तक एक लाख रुपये के कर्ज पर प्रति दिन 10 हजार के ब्याज से कराहते किसान की कराह कोलाहल के बीच दम तोड़ चुकी है। 2016 को पवई के हीरानंदानी अस्पताल में डॉक्टरों की मिलीभगत से चल रहे अवैध किडनी ट्रांसप्लांट के गोरखधंधे से कुंभकर्णी नींद सो रही राज्य सरकार की आंखें कब खुलेंगी, कोई नहीं जानता है?
किडनी के इस अवैध लेकिन पैसे से भरपूर गोरखधंधे में दिल्ली, हरिद्वार-देहरादून, सूरत, चेन्नई, जयपुर या महाराष्ट्र के अकोला के अमित तक सैकड़ों लोग किडनी के अवैध कारोबार का हिस्सा बने। सही जांच और ढीले नियम-कानूनों से अभी तक असली सूत्रधार गिरफ्त में नहीं आ सका है।
सरकार ने साहूकारों की जबरन वसूली पर लगाम लगाने के लिए 2014 में एक कानून बनाया था लेकिन उत्पीड़न अभी भी रुका नहीं है। लाइसेंस प्राप्त साहूकारों को भी व्यक्तिगत ऋण वितरित करने की अनुमति है। यदि साहूकार अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो लाइसेंस रद्द हो सकता है। यही नहीं, जो व्यक्ति बिना लाइसेंस के साहूकारी करता है उसे 5 साल तक की कैद या 50,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
पुणे पोर्श केस में आरोपी के ब्लड सैंपल बदलने के आरोपों में फंसे डॉ। अजय तवारे का नाम किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट से भी जुड़ा है। यह रैकेट तब सामने आया जब पुलिस को स्वास्थ्य सेवा बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर डॉ। संजोग कदम की ओर से ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के दौरान अवैध वितीय लेन-देन के बारे में शिकायत मिली,
पुणे ही में अप्रैल 2022 में रूबी हॉल क्लिनिक किडनी घालमेल सामने आया था। यहां किडनी धोखाधड़ी अगस्त 2021 से 29 मार्च 2022 के बीच हुई। अमित सालुंखे को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। सुजाता एजेंटों के माध्यम से 15 लाख रुपये के बदले में अपनी किडनी देने के लिए तैयार हो गई। यह घटना तब सामने आई जब रूबी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट किया गया लेकिन डोनर सुजाता को वादा किए गए रुपये नहीं मिले।
सबसे बड़ा कानून टीएचओए (ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट), 1994 है, जिसमें 1995, 2008, 2011 और 2014 में बदलाव किए गए, इसके अलावा ह्यूमन ऑर्गन टिशू ट्रांसप्लांट रूल्स, 2014 भी लागू होते हैं।
इनमें नजदीकी रिश्तेदार (माता-पिता, बच्चे, भाई-बहन) या पति/पत्नी शामिल होते है। अस्पताल की एक समिति सारे दस्तावेजों की जांच करती है। जरूरत पड़े तो डीएनए टेस्ट भी किया जाता है।
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इमोशनली जुडे डोनर्स, जिनमे दोस्त, पड़ोसी या दूर के रिश्तेदार के लिए अस्पताल, जिला या राज्य स्तर की बड़ी समिति से मंजूरी लेनी होती है। ये कमिटी ये टेस्टिंग करती है कि कहीं कोई पैसों का लेन-देन या दबाव तो नहीं है।
किडनी ट्रांसप्लांट के अवैध कारोबार से जुड़े लोगों में डॉक्टर से लेकर दलाल तक सभी शामिल है जब तो अवैध साहूकार भी उनके एजेंट बन गए है। मामले की गंभीरता को ऐसे समझ सकते हैं कि चंद्रपुर का रोशन जिसे 150 किमी दूर नागपुर सिटी बस स्टैंड का पता नहीं होगा, वह 4,983 किम दूर कंबोडिया पहुंच जाता है किडनी निकलवाने।
जाहिर है यह मकड़जाल बहुत गहराई तक फैला हुआ है, जिसमें कर्जदार किसान, अलग-अलगजरूरतों के लिए पैसों की तंगी से जूझते परिवार, पिछड़े इलाकों से फंसाकर लाए गए लोग और धोखे से किडनी निकाले जाने की अनगिनत पीड़ित फंसते रहते हैं।
लाखों रुपये का लेन-देन, विदेशों तक फुटप्रिंट, बड़े डॉक्टरों की संलिप्तता के बावजूद केंद्र सरकार एक गहन ईडी और सीबीआई जांच के आदेश क्यों नहीं दे सकी… यह यक्ष प्रश्न शायद आगे भी अनुत्तरित ही रहेगा।






