नागपुर. स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद राज्य चुनाव आयोग ने 2 सप्ताह के भीतर ही चुनावी कार्यक्रम घोषित होने के संकेत दिए गए थे. किंतु अब 14 महानगरपालिकाओं के साथ अन्य चुनावों को लेकर ओबीसी सहित अन्य आरक्षण नये सिरे से होने की जानकारी सूत्रों ने दी. नये सिरे से आरक्षण होने के कारण अब इच्छुकों में हड़कम्प मचा हुआ है.
उल्लेखनीय है कि 3 सदस्यीय प्रभाग रचना होने के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति, महिलाओं के लिए आरक्षण निश्चित किया गया था. इसके बाद प्रभाग के अनुसार मतदाता सूची तक निश्चित की गई थी. किंतु अब ओबीसी आरक्षण निर्धारित होने से उसके लिए भी सीटें सुनिश्चित की जाएंगी. माना जा रहा था कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण निकालने के बाद बचे प्रभागों में से ही ओबीसी का आरक्षण निकाला जाएगा. किंतु अब नये सिरे से आरक्षण होने से प्रभागों के समीकरण ही बदल जाएंगे.
-जानकारों के अनुसार 3 सदस्यीय प्रभाग रचना के आरक्षण निर्धारित होने के बाद भले ही चुनाव लगातार टलते जा रहे थे किंतु इच्छुकों ने प्रभाग की स्थिति के अनुसार चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी.
-आरक्षण के कारण प्रभाग में जगह नहीं होने से कुछ इच्छुक नेताओं ने तो आसपास के प्रभागों में अपनी दावेदारी पक्की करते हुए रणनीति भी बना ली थी लेकिन अब नये सिरे से आरक्षण होने से प्रभागों के समीकरण ही बदल जाएंगे.
-यहां तक कि अब राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के कारण नागपुर महानगरपालिका में पहले की तरह 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है. माना जा रहा है कि भाजपा के पास 4 सदस्यीय प्रभाग के अनुसार पहले से चुनावी खाका तैयार है.
-कुछ पुराने पार्षदों की टिकट काटकर नये लोगों को मौका देना है. ऐसे में 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति रहने से उन्हें नुकसान होने की कम संभावना होगी. यही कारण है कि 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
जानकारों के अनुसार यदि 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति लागू हुई तो सर्वाधिक नुकसान छोटे दलों को होगा. बड़े प्रभाग होने के कारण न केवल धन-बल बल्कि श्रम-बल भी अधिक लगेगा. छोटे दलों के पास इन दोनों की कमी होती है. ऐसे में बड़े दलों को टक्कर देना उनके लिए आसान नहीं होगा. साथ ही छोटे दलों के पास सभी प्रभागों में प्रत्याशी देना भी संभव नहीं होगा जिससे मनपा में सत्ता स्थापित करते समय उनकी ताकत कमजोर साबित होगी. छोटे दलों के पास किसी पड़ी पार्टी से गठबंधन के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.
उल्लेखनीय है कि राज्य चुनाव आयोग की ओर से पहले ही जनसंख्या के अनुसार वार्ड की संख्या सुनिश्चित की गई है. 156 वार्ड की संख्या के अनुसार 3 सदस्यीय प्रभाग पद्धति में 52 प्रभाग निश्चित हुए हैं जिससे वार्ड की संख्या ज्यों की त्यों ही रहेगी. केवल 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति होने पर प्रभागों की संख्या 39 हो जाएगी. यहां तक कि यदि प्रभाग पद्धति में परिवर्तन हुआ तो नये सिरे से प्रभागों का सीमांकन भी करना पड़ सकता है. इसके अनुसार फिर चुनावों में देरी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.