पुरातन सभ्यता से मिलती है कई जानकारियां (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) इंडिया द्वारा महाराष्ट्र शासन और ज़ीरो माइल यूथ फ़ाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में रेशिमबाग मैदान में नौ दिवसीय ‘नागपुर बुक फ़ेस्टिवल 2025’ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रम हो रहे हैं। मंगलवार को आयोजित ‘लेखक मंच’ कार्यक्रम में पुरातत्वविद और लेखक डॉ. मनोहर नरांजे तथा झाड़ीबोली और पोवारी भाषा के शोधकर्ता एवं लेखक एड. लखनसिंग कटरे का साक्षात्कार (इंटरव्यू) आयोजित किया गया। इस महोत्सव में 30 नवंबर तक विभिन्न साहित्यिक गतिविधियाँ होंगी और नागपुरवासियों से इसका लाभ लेने की अपील की गई है।
पेशे से शिक्षक, पुरातत्व शोधकर्ता और लेखक डॉ. मनोहर नरांजे ने पूर्व विदर्भ में हुए उत्खननों, पुरातत्व स्थलों की पहचान, अनुसंधान के दौरान सामने आई चुनौतियों और अपने लेखन-प्रवास से जुड़े कई रोचक अनुभव साझा किए। डॉ. भालचंद्र हरदास ने उन्हें विभिन्न विषयों पर विस्तार से बोलने के लिए प्रेरित किया। प्राचीन भारतीय इतिहास-संस्कृति के शोधकर्ता डॉ. प्रदीप मेश्राम के संपर्क में आने के बाद ‘कोलते गौरव ग्रंथ’ उनके हाथ लगा, जिससे पुरातत्वशास्त्र के प्रति उनका लगाव और गहरा हो गया।
पुरातत्व क्षेत्र में वर्षों की खोज, भटकन और अध्ययन के दौरान उन्होंने कुल नौ नए पुरातत्व स्थलों की पहचान की है। पूर्व विदर्भ के स्थलों का गहन अध्ययन करते हुए उन्होंने ‘भंडारा-गोंदिया परिसरातील पुरातत्व’ विषय पर शोधग्रंथ भी लिखा है।
प्रसिद्ध साहित्यकार, शोधकर्ता तथा झाड़ीबोली-पोवारी भाषाओं के संरक्षक एड. लखनसिंग कटरे ने अपने साहित्यिक सफर, प्रेरणाओं, संघर्षों और भाषाई संरक्षण के प्रयासों को साझा किया। उन्होंने झाड़ीबोली और पोवारी साहित्य को संरक्षित करने की अपनी यात्रा, कठिन परिस्थितियों और उपलब्धियों के बारे में बताया। कटरे ने कहा, “कविता ही मेरा जीवन-रस है। कविता और मेरी पत्नी उषा-इन्हीं दोनों ने मुझे जीवन की अनेक कठिनाइयों को पार करने की शक्ति दी।”
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कबीर कैफ़े देशभर में लोकप्रिय एक न्यू फोक फ्यूज़न बैंड है, जिसने पारंपरिक लोक संगीत को आधुनिक संगीत से जोड़कर अपनी अनूठी पहचान बनाई है। संत कबीर के दोहों को आधुनिक धुनों, बीट्स और टेक्नो-फोक शैली में प्रस्तुत कर बैंड ने कबीर दर्शन को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।