हाई कोर्ट (सौजन्य-सोशल मीडिया)
High Court: भारत सरकार के उपक्रम मॉइल लिमिटेड द्वारा कथित रूप से प्रतिबंधित कार्यों को आउटसोर्स करने के लिए जारी किए गए ई-टेंडर के खिलाफ मॉइल जनशक्ति मजदूर संघ ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मॉइल प्रबंधन का यह कदम पूरी तरह से अवैध, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह केंद्र सरकार द्वारा 1993 में जारी अधिसूचना का सीधा उल्लंघन है।
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार, मॉइल और मुख्य श्रम आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अरविंद वाघमारे ने पैरवी की।
याचिकाकर्ता के अनुसार केंद्र सरकार ने 23 मार्च, 1993 को गैजेट अधिसूचना जारी कर मैंगनीज खदानों में स्थायी और नियमित प्रकृति के कुछ कार्यों पर ठेका मजदूरों के नियोजन पर रोक लगा दी थी। यह रोक अनुबंध श्रम अधिनियम, 1970 की धारा 10(1) के तहत लगाई गई थी और वर्तमान में भी लागू है।
इसके बावजूद मॉइल लिमिटेड ने इस रोक से छूट पाने के लिए अधिनियम की धारा 31 के तहत एक प्रस्ताव दायर किया था। इस प्रस्ताव पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और मामला विचाराधीन है। अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच केंद्रीय सलाहकार अनुबंध श्रम बोर्ड की बैठकें भी हुईं जिनमें याचिकाकर्ता संघ ने भी हिस्सा लिया और मॉइल के इस कदम का विरोध किया था।
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मॉइल जनशक्ति मजदूर संघ ने याचिका में 16 सितंबर, 2025 को जारी किए गए ई-टेंडर को रद्द और अमान्य घोषित करने, याचिका पर अंतिम निर्णय आने तक टेंडर प्रक्रिया पर तत्काल अंतरिम रोक लगाने के आदेश देने का अनुरोध किया है। याचिका में मॉइल प्रबंधन पर यह भी आरोप लगाया गया है कि वे प्रतिबंधित कार्यों को अलग-अलग नाम देकर आउटसोर्स करने की कोशिश कर रहे हैं जो कि पहले से कार्यरत कर्मचारियों के साथ भेदभावपूर्ण है। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने उक्त आदेश दिया।