नागपुर न्यूज
Nagpur News: महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ इंटरेस्ट ऑफ डिपॉजिटर्स (MPID) एक्ट, 1999 की धारा 4 और 5 के तहत जारी अधिसूचना 14 जून 2023 के तहत संपत्तियां अटैच की गई थीं। मामले में राहत मिलने के बाद इन संपत्तियों को डी-नोटिफाई करने का अनुरोध करते हुए नूतन सिंह ने हाई कोर्ट में फौजदारी रिट याचिका दायर की जिस पर कई बार आदेश देने के बावजूद इनका पालन नहीं किया गया।
मंगलवार को याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश राज वाकोडे ने संपत्ति डी-नोटिफाई (कुर्की हटाने) करने की प्रक्रिया में हो रही अत्यधिक देरी को लेकर राज्य सरकार के प्रति कड़ी नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने 25 अगस्त 2025 के अपने आदेश में यह प्रश्न उठाया था कि जब याचिकाकर्ताओं को बरी कर दिया गया है और प्रतिष्ठानों को वित्तीय प्रतिष्ठान नहीं माना गया है तो जांच अधिकारी ने MPID अधिनियम की धाराओं 4 और 5 के तहत संलग्न संपत्तियों को डी-नोटिफाई करने के लिए आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए।
कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ताओं को पहले ही MPID अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध से बरी किया जा चुका है। कोर्ट के पहले के आदेशों के अनुसार डी-नोटिफिकेशन की प्रक्रिया 25 अगस्त 2025 से लंबित है। 16 सितंबर 2025 को सहायक सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया था कि नागपुर ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक ने जिलाधिकारी के साथ संपत्तियों को डी-नोटिफाई करने के लिए पत्राचार किया था और यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
इसके बाद 25 सितंबर 2025 को जिलाधिकारी ने उपसचिव, गृह विभाग, मंत्रालय, मुंबई को एक पत्र भेजकर संपत्तियों को अटैच करने वाली अधिसूचना को रद्द करने की सिफारिश की थी। पिछली सुनवाई पर एपीपी ने कहा था कि अंतिम निर्णय 3 सप्ताह के भीतर ले लिया जाएगा किंतु अब तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया। इस संदर्भ में पूछे जाने पर सहायक सरकारी वकील ने गृह विभाग के डेस्क अधिकारी द्वारा जारी एक पत्र प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न विभागों के मंजूरी की आवश्यकता बताते हुए 8 सप्ताह का समय मांगा गया।
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सरकारी पक्ष द्वारा समय देने का अनुरोध किए जाने पर कड़ा रुख अपनाते हुए कोर्ट ने कहा कि सरकारी पक्ष न्यायालय के आदेश को हल्के में ले रहे हैं। हाई कोर्ट ने अंतिम निर्णय लेने के लिए राज्य को केवल एक सप्ताह का समय दिया।
कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि यदि एक सप्ताह के भीतर अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता है तो गृह विभाग के प्रधान सचिव को 17 नवंबर 2025 को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायालय के समक्ष उपस्थित रहना होगा। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि वह उन दोषी अधिकारी/अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की सिफारिश करने पर विचार कर सकती है जो न्यायालय के आदेश के अनुसार और कानून के तहत आवश्यक कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।