फुटाला तालाब (सौजन्य-नवभारत)
Nagpur Futala Lake: नागपुर में चाहे वह फुटाला, अंबाझरी हो या फिर गांधीसागर, सक्करदरा व सोनेगांव तालाब। फुटाला लेक परिसर तो शहरवासियों ही नहीं बल्कि बाहरगांव से आने वाले लोगों की पसंदीदा नैसर्गिक जगह थी। यहां का सूर्यास्त देखने लोगों का हुजूम लगा करता था लेकिन आज म्यूजिकल फाउंटेन आदि विकसित करने के चक्कर में पूरा सौंदर्य नष्ट कर दिया गया है।
वीकेंड में युवाओं व परिवार सहित यहां आने वालों की भारी भीड़ हुआ करती थी। वे लेक की दीवारों पर बैठकर घंटों समय व्यतीत किया करते थे। खुशहाल मंजर हुआ करता था लेकिन आज परिसर को खंडहर बनाकर रख दिया गया है। लेक व रोड के बीच में जो गलियारा हुआ करता था वहां अब झाड़ियां उग आई हैं। मलबा, कचरा, गंदगी का आलम है।
दादागिरी ऐसी है कि गलियारे में दरवाजा लगाकर ताला जड़ दिया गया है। यहां आने वाले अब ऊपरी दीवार पर बैठकर गलियारे की दुर्दशा का नजारा देखने को मजबूर हैं। कोई नीचे उतर भी नहीं सकता क्योंकि ताला जड़ा हुआ है। मतलब लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करने का कार्य राजनीतिक, प्रशासनिक तंत्र ने जिस तानाशाही से यहां किया उसे नागरिक बेहद शर्मनाक तक बता रहे हैं।
ठेले वालों का कब्जा (सौजन्य-नवभारत)
यहां आने वाले युवाओं ने नाराजगी जताते हुए कहा कि फाउंटेन शुरू नहीं हुआ कोई बात नहीं लेकिन पूरे परिसर में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी किस अधिकार से लगाई गई। एनआईटी के अधिकारियों और वजनदार नेताओं को इसका जवाब देना चाहिए।
करोड़ों फूंक दिया गया लेकिन सुरक्षा के प्रबंध नहीं किये गए। हालत यह है कि वर्टिकल गार्डन के लटके गमले बड़े पैमाने पर चोरी चले गए हैं और उसमें एक गुब्बारे पर निशाना लगाने की दुकान खुल गई है। कोई देखने वाला नहीं है। परिसर में बनीं दुकानों पर ताला जड़ा हुआ है और जहां टिकट काउंटर होना था वहां कुछ ठेले वालों ने कब्जा जमाकर दुकानें शुरू कर दी हैं।
वर्टिकल गार्डन बना ‘निशाने’ की दुकान (सौजन्य-नवभारत)
नागपुर के एक खूबसूरत परिसर को कैसे बदसूरत किया गया है, उसका उदाहरण फुटाला बन गया है। जिस तरह गांधीसागर तालाब परिसर में लाखों फूंककर खाऊगली बनाई गई और फिर उसे कबाड़ कर दिया गया वैसा ही हस्र करोड़ों रुपये फूंककर फुटाला का कर दिया गया है। संबंधित तंत्र को पब्लिक का पैसा बर्बाद करने का दुख होता भी है या नहीं, यह उन्हें सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए।
बड़ी-बड़ी शेखी बघारते हुए परिसर पर करोड़ों रुपये फूंके गए। वीवीआईपी लोगों को म्यूजिकल फाउंटेन के शो दिखाए गए। फिर कुछ लोगों ने अदालती रोड़ा अटकाया और सारी शेखी निकल गई। यहां 400 लोगों के बैठने के लिए दर्शक दीर्घा बनाई गई जो अब कबाड़ बन गई है।
करोड़ों रुपये खर्च कर 1100 वाहनों की मल्टीस्टोरी पार्किंग प्लाजा बनाया गया जो फिलहाल किसी काम का ही नहीं है। म्यूजिकल फाउंटेन पर ही 30 करोड़ रुपयों से अधिक खर्च किया गया था जिसकी जलसमाधि बन गई है। यहां लगे सूचनाफलक तक उखड़कर धराशायी हो गए हैं जिसे देखने वाला कोई नहीं है।
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परिसर में आए युवा अंकुश जायसवाल ने कहा कि सपने बड़े-बड़े दिखाए। जब यहां कुछ नहीं था तब ही परिसर बहुत सुंदर था। लोग सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए, योगा के लिए लेक के किनारे की लॉबी में आया करते थे। अब तो भीतर भी नहीं जा सकते। शाम को परिवार के साथ आना सुखद होता था। अब तो लोगों ने आना बंद कर दिया है। अंकुश ने सवाल किया कि योजना बनाने वाले क्या साकार करने के पहले इस बात पर विचार नहीं करते कि आगे इसमें कोई बाधा आ सकती या नहीं। करोड़ों फूंककर अब केवल तमाशबीन बने बैठे हैं।