मोहन भागवत (सौजन्य-IANS)
Mohan Bhagwat in Nagpur: विचारक कहते हैं कि दुनिया में बदलाव आ रहा है। इस बदलते दौर में अगर मनुष्य सही दिशा नहीं अपनाता, तो विनाश का समय आ सकता है। लेकिन, अगर हम समय को पहचानें और सही दिशा में सही कदम उठाएं, तो मानव जीवन का एक नया उन्नत स्वरूप स्थापित हो जाएगा।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने श्रावणमास के अवसर पर नागपुर के दीनदयाल नगर स्थित पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर में अभिषेक और पूजन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि कई लोग सोचते हैं कि इतने वर्षों की मेहनत के बाद अब अच्छे दिन आ गए हैं, अब कुछ मिल जाए। ऐसी अपेक्षा न रखें।
हालांकि, शिव का स्वभाव ऐसा नहीं है कि हमें कुछ मिले। हम केवल उन्हीं चीजों को अपनाते हैं जिनसे खतरा होता है और दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए इसी दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने की बहुत आवश्यकता है। दुनिया की सभी समस्याओं के पीछे मनुष्य का लालच और कट्टरता है।
कट्टरता क्रोध और घृणा पैदा करती है और युद्धों का कारण बनती है। यह स्वार्थी रवैया और भेदभाव मानव प्रवृत्ति के अंधेरे पक्ष हैं। इस प्रवृत्ति को बदलना होगा। प्रत्येक क्रिया के पीछे एक भावना होती है और यदि हम उसे समझकर उसके अनुसार आचरण करें, तो वह संस्कृति बन जाती है।
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इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की विशेषताओं को रेखांकित किया था। केरल में आयोजित ‘ज्ञान सभा’ सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो स्वार्थ नहीं, सेवा और त्याग सिखाए। भागवत ने इस मौके पर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाया था कि जो शिक्षा इंसान को सिर्फ नौकरी या पैसा कमाने का साधन बनाती है, वो अधूरी है। असली शिक्षा वो है जो आत्मनिर्भरता, संस्कार और समाज सेवा के लिए प्रेरित करें।
केरल में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में भागवत ने भारतीय परंपरा और जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा को समय की जरूरत बताया था। उन्होंने कहा था कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यक्ति को ऐसा बनाना चाहिए जो कहीं भी अपने दम पर जीवन जी सकें। मोहन भागवत के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य सिर्फ करियर नहीं, समाज के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनाना है। उन्होंने युवाओं से भी आह्वान किया कि वे शिक्षा को सेवा से जोड़कर देखें।