नागपुर में सीएम देवेंद्र फडणवीस (सौजन्य-एक्स)
नागपुर: मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को कहा कि महाराष्ट्र की जल समस्या को हल करने के लिए बड़े बांधों के साथ-साथ नदी जोड़ परियोजनाएं, जल संरक्षण, जल पुनर्भरण, जल पुन:उपयोग और अन्य छोटे-बड़े परियोजनाओं का समन्वय जरूरी है। इसी दृष्टिकोण से पश्चिमी प्रवाही नदियों के समुद्र में बहने वाले 54 टी.एम.सी. पानी को गोदावरी बेसिन में लाने का हमने संकल्प लिया है।
साथ ही नलगंगा–वैनगंगा नदी जोड़ परियोजना के माध्यम से विदर्भ के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी पहुंचाया जा रहा है। तापी बेसिन का जो 35 टी.एम.सी. पानी गुजरात के रास्ते समुद्र में बह जाता है, उस पानी को अब तापी बेसिन में ही रोकने की योजना है। इस परियोजना से भविष्य का महाराष्ट्र एक जल संकट से उबरने वाला सफल राज्य बनकर उभरेगा।
वनामती सभागृह में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना विभाग और जनकल्याणकारी समिति नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय विदर्भ जल परिषद के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में सिंचाई की कमी एक पुरानी समस्या रही है। पानी नहीं है इसलिए सिंचाई परियोजना नहीं और सिंचाई परियोजना नहीं है इसलिए किसान खेती नहीं कर सकते, इस दुष्चक्र के कारण किसान आत्महत्या कर रहे थे।
2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद हमने ‘बलिराजा योजना’ की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत 90 योजनाएं लागू की गईं। जलयुक्त शिवार योजना के माध्यम से जलसंवर्धन पर विशेष जोर दिया गया। जिलाधिकारियों को योजना का प्रमुख बनाकर विभिन्न योजनाओं को एकीकृत किया गया। जनता की भागीदारी से लगभग 700 करोड़ रुपए का निधि जल संरक्षण हेतु जमा किया गया। इस क्रांतिकारी प्रयास से लगभग 20 हजार गांवों में जल स्थिति में परिवर्तन आया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भूमि के क्षारीकरण को रोकने के लिए जल का संयमित उपयोग जरूरी है। जहां पानी नहीं है वहां की समस्या अलग है, लेकिन जहां पानी उपलब्ध है वहां अति-उपयोग से उपजाऊ भूमि क्षारीय हो रही है और कृषि के लिए अनुपयुक्त बन रही है। तापी घाटी में खारापन एक बड़ी चुनौती है। इसका हल ड्रिप सिंचाई जैसे आधुनिक कृषि तकनीक के प्रयोग से और खुले नहरों की जगह पाइपलाइन से पानी पहुंचाने से ही संभव है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि तापी बेसिन में पुनर्भरण के लिए हाल ही में मध्यप्रदेश के साथ समझौता किया गया है, जिससे बुलढाणा, अकोला और वाशिम जिलों में खारापन पर काबू पाया जा सकेगा। इस परियोजना से बड़ी मात्रा में कृषि के लिए जल उपलब्ध होगा। वैनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ परियोजना के माध्यम से लगभग 500 किमी लंबी नदी प्रणाली का निर्माण किया जाएगा। वर्षों से अधूरी गोसीखुर्द परियोजना का 90% काम पूरा हो चुका है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि ‘नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी परियोजना (पोखरा योजना)’ को विदर्भ के गांवों में लागू करने का निर्णय लिया गया है। यह योजना जल साक्षरता, जनता की भागीदारी और उन्नत कृषि तकनीकों के प्रसार हेतु महत्वपूर्ण है। इस योजना से जल संरक्षण का व्यापक आंदोलन शुरू होगा। जल का उपयोग हम सहजता से करते हैं क्योंकि यह प्रकृति का उपहार है, लेकिन बदलते मौसम और जलवायु के कारण जल संरक्षण, पुनर्भरण और पुन: उपयोग के त्रिसूत्रीय उपायों से ही जल संकट का समाधान हो सकता है। नदियों का प्रदूषण रोकने के लिए हर शहर से छोड़ा गया जल पहले प्रक्रिया करके ही छोड़ा जाना चाहिए।
उद्धव-राज का ये पोस्टर बना चर्चा का विषय, गठबंधन की अटकलों पर गिरगांव वासियों ने की बड़ी अपील
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह तीन दिवसीय परिषद विभिन्न समस्याओं पर मंथन करेगी और विशेषज्ञ अपने विचार रखेंगे। इस परिषद से केवल प्रश्न नहीं, बल्कि समाधान के दस्तावेज भी सामने आएं, ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने कहा कि जनभागीदारी आधारित योजनाएं जल समस्याओं के स्थायी समाधान में अधिक कारगर होती हैं।