बीएमसी (pic credit; social media)
BMC News: बीएमसी संचालित अस्पतालों में मरीजों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जून महीने में मनपा ने दवाइयों की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी और जुलाई से मुफ्त दवाइयां मिलने का दावा किया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि सितंबर आधा गुजर चुका है और मरीजों को अब भी मेडिकल स्टोरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
बीएमसी प्रशासन ने जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी की घोषणा बड़े धूमधाम से की थी। इस पॉलिसी के तहत मरीजों को डॉक्टर के लिखे प्रिस्क्रिप्शन की हर दवा अस्पताल से मुफ्त मिलनी थी। लेकिन हकीकत उलटी है। मरीज दवा की तलाश में भटक रहे हैं और डॉक्टर द्वारा लिखी ज्यादातर दवाइयां बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं। गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों पर यह सीधा आर्थिक बोझ बन गया है।
दरअसल, 2022 में जिन कंपनियों से दवा आपूर्ति का अनुबंध था, उनका कार्यकाल खत्म हो गया था। उसके बाद टेंडर प्रक्रिया में देरी हुई और दवाओं की आपूर्ति बाधित हो गई। जून 2024 में नए प्रस्ताव को मंजूरी तो मिल गई, लेकिन वितरकों को अब तक कार्यादेश जारी नहीं किए गए। ऐसे में दवा कंपनियां आपूर्ति करने में असमर्थ हैं।
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मिली जानकारी के मुताबिक, बीएमसी ने 1100 से 1200 करोड़ रुपये की दवाइयों और सामग्री खरीदने की योजना बनाई थी। इसमें कैप्सूल, इंजेक्शन, द्रव और सर्जिकल सामान सब शामिल था। उम्मीद थी कि जुलाई से सभी अस्पतालों में दवाइयों का स्टॉक उपलब्ध होगा। लेकिन फाइलें मंजूरी के बाद भी अटक गईं और नतीजा यह निकला कि मरीजों को अब भी दवाइयां खुद खरीदनी पड़ रही हैं।
बीएमसी की इस लापरवाही पर विपक्ष ने भी हमला बोला है। मनपा के उपाध्यक्ष रवि राजा ने कहा कि दवाइयों की किल्लत से लाखों मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा है। एनसीपी के प्रदेश प्रवक्ता अमोल महाले ने आरोप लगाया कि ठेकेदारी और अधिकारियों की मिलीभगत के कारण हालात बिगड़े हैं।
अब सवाल यह है कि जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी, जिस पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, आखिर कब अमल में आएगी। मरीजों को कब तक अपनी जेब से दवाइयां खरीदनी पड़ेंगी। बीएमसी प्रशासन के दावे कागजों में हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।
मुंबई के अस्पतालों में दवाइयों की किल्लत जारी है और इसका खामियाजा सबसे ज्यादा गरीब मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। सवाल ये है कि क्या बीएमसी अब भी जागेगी या मरीज ऐसे ही बेहाल रहेंगे?