राहुल गांधी धारावी प्रोजेक्ट विरोध प्रदर्शन (pic credit; social media)
Dharavi Redevelopment Project: एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी के पुनर्विकास को लेकर शुरू हुई कांग्रेस की लड़ाई अब भीतर से कमजोर पड़ती दिख रही है। पार्टी के भीतर असंतोष है और आलाकमान तक शिकायत पहुंच चुकी है कि कुछ नेता दुश्मनों से हाथ मिलाकर आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं। दिल्ली में इस पूरे मामले पर नोटिंग शुरू हो गई है और सूत्रों के मुताबिक वक्त आने पर संबंधित नेताओं पर संगठनात्मक कार्रवाई तय है।
धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को अडानी समूह को दिए जाने के बाद कांग्रेस, शिवसेना (ठाकरे गुट) और कई अन्य संगठनों ने इसका विरोध शुरू किया था। कांग्रेस ने इसे “एशिया का सबसे बड़ा घोटाला” बताया था और दावा किया था कि इस प्रोजेक्ट के चलते 6 से 7 लाख लोगों को मुंबई से बेदखल किया जाएगा। विरोध की लहर कुछ महीनों तक जोरों पर रही, लेकिन अब उसी में सन्नाटा छा गया है।
विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने धारावी पहुंचकर मजदूरों और झुग्गीवासियों से मुलाकात की थी। उस वक्त उन्होंने भाजपा और अडानी समूह पर सीधा हमला बोला था। राहुल ने आरोप लगाया था कि “सरकार उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है, जनता के लिए नहीं।” लेकिन अब पार्टी के अंदर के ही कुछ नेताओं पर यह आरोप है कि उन्होंने संघर्ष से मुंह मोड़ लिया है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, दिल्ली में धारावी से जुड़े नेताओं की गतिविधियों की रोज नोटिंग की जा रही है। किसने बैठक अटेंड की, किसने मीडिया में आवाज उठाई और किसने चुप्पी साध ली। हर बात की रिपोर्ट तैयार हो रही है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पार्टी में अब सर्जिकल एक्शन की जरूरत है। जो आंदोलन कमजोर कर रहे हैं, उन पर गाज गिरनी ही चाहिए।”
स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं का कहना है कि आंदोलन की रफ्तार धीमी पड़ने से धारावी के लोगों में नाराजगी है। “पहले रोज धरना, विरोध मार्च और प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी, अब सब बंद हो गया है।” कांग्रेस के अंदर धारावी अब सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि संगठन की परीक्षा बन चुका है। सवाल यह है, क्या पार्टी अपने ही अंदर की दरारों को भर पाएगी, या धारावी की लड़ाई सिर्फ नारों तक सिमटकर रह जाएगी?