निकाय चुनाव से पहसे गरमाया 'असली शिवसेना' का मुद्दा (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Maharashtra politics: महाराष्ट्र की राजनीति में निकाय चुनाव से पहले नया मोड़ आने वाला है। शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। इस हाई-वोल्टेज मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई अगस्त में तय की है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले महीने इस विवाद का बड़ा फैसला आ सकता है।
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग भी की है कि जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक धनुष-बाण चिन्ह को फ्रीज कर दिया जाए ताकि शिंदे गुट इसका राजनीतिक लाभ न उठा सके। कोर्ट ने अब इस याचिका पर अगली सुनवाई अगस्त में तय की है, जिससे सियासी हलकों में हलचल और तेज हो गई है।
सुनवाई के बाद विधान भवन परिसर में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट अगस्त में फैसला देता है, तो यह हमारे लिए संतोष की बात होगी। सुप्रीम कोर्ट ही हमारी आखिरी उम्मीद है, जहां इस राजनीतिक चोरी का न्याय होगा। हमारा नाम चुराया गया है, पार्टी की पहचान छीन ली गई है। चुनाव आयोग को केवल चिन्ह देने का अधिकार है, किसी पार्टी का नाम किसी और को देने का नहीं। हम इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे।
उद्धव ठाकरे ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को लेकर भी सक्रियता की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन की अब तक कोई बैठक नहीं हुई है। अब बिहार सहित कई राज्यों में चुनाव आने वाले हैं, महाराष्ट्र में भी स्थानीय निकाय चुनाव होंगे। ऐसे में एकजुट रणनीति बनाना जरूरी है। इंडिया गठबंधन की बैठक जल्द से जल्द बुलानी चाहिए। ठाकरे ने साफ शब्दों में कहा कि कोई भी चुनाव हो, वह बैलेट पेपर से होना चाहिए। जनता का भरोसा अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से डगमगाने लगा है।
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तो वहीं मनसे नेता बाला नांदगांवकर के उस बयान पर, जिसमें उन्होंने कहा कि मनसे महापालिका चुनाव अकेले लड़ेगी, उद्धव ठाकरे ने कूटनीतिक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि हमें बताया गया है कि इस मुद्दे पर मनसे के किसी भी प्रवक्ता को बयान नहीं देना है। पहले चुनाव की तारीखें तो घोषित होने दीजिए। हाल ही में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की मुलाकात हुई थी, जिससे राजनीतिक गलियारों में दोनों के साथ आने की अटकलें तेज हो गई थीं। मगर अब मनसे की तरफ से अलग राह के संकेत दिए जाने से इन चर्चाओं को झटका लगा है।
शिवसेना का नाम और चिन्ह केवल एक पहचान नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति की आत्मा है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं। अगस्त में आने वाला फैसला न केवल दो गुटों की साख का सवाल होगा, बल्कि राज्य की राजनीति को भी नई दिशा दे सकता है।