राज ठाकरे ने रोका अपना काफिला (सौजन्यः सोशल मीडिया)
मुंबई: महाराष्ट्र की सियासत में कट्टर प्रतिद्वंद्वी कहे जाने वाले ठाकरे भाइयों के रिश्ते में रविवार को एक दिलचस्प मोड़ आया। आमने-सामने आते ही छोटे भाई ने बड़े भाई के लिए रास्ता छोड़ दिया और इस छोटी सी घटना ने राज्य की राजनीति में दोनों के शक्ति प्रदर्शन के साथ अच्छाई का भी प्रदर्शन हुआ। हुआ यूं कि उद्धव ठाकरे का काफिला दादर में उनके भाई राज ठाकरे के आवास ‘शिवतीर्थ’ के सामने से गुजर रहा था। उसी समय राज ठाकरे भी अपने काफिले के साथ बाहर निकल रहे थे।
सड़क पर दोनों के काफिले आमने-सामने आ गए। तभी राज ठाकरे ने तुरंत अपने ड्राइवर और सुरक्षा टीम को काफिला रोकने का आदेश दिया। जब तक उद्धव ठाकरे का पूरा काफिला आगे नहीं बढ़ गया, राज ठाकरे वहीं खड़े रहे। उद्धव के निकलने के बाद ही उन्होंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई। यह नजारा देख लोगों की जुबां पर एक ही बात थी कि राजनीति अपनी जगह, लेकिन रिश्ते अपनी जगह।
इस छोटे से घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। कट्टर राजनीतिक विरोध के बावजूद भाईचारे की यह झलक सबको चौंका गई। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे। क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक था या कोई नया राजनीतिक संकेत? क्या दोनों भाई फिर से एक मंच पर आ सकते हैं?
मामला यहीं खत्म नहीं होता। दरअसल राज ठाकरे ने 5 जुलाई को मुंबई में हिंदी थोपने के खिलाफ विशाल मोर्चा निकालने का ऐलान किया है। सबसे बड़ी बात इस मोर्चे को उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी समर्थन देने की घोषणा कर दी है। राज ठाकरे ने मराठी अस्मिता के मुद्दे पर सभी दलों को एक मंच पर आने का खुला न्योता देते हुए कहा, “यह किसी एक पार्टी का नहीं, पूरे महाराष्ट्र का सवाल है। मतभेद भुलाकर सबको एक होना होगा।” राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह आह्वान ठाकरे भाइयों को एक मंच पर लाने की शुरुआत भी हो सकता है।
अगर ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो मराठी मतों का बड़ा ध्रुवीकरण हो सकता है। यह सत्ताधारी गठबंधन और विपक्ष दोनों के लिए नई चुनौती बन सकता है। मराठी अस्मिता का मुद्दा फिर से चुनावी एजेंडा बन सकता है।
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2006 में अलग होने के बाद पहली बार ठाकरे भाई एक जैसे मुद्दे पर एक मंच पर दिख सकते हैं। यह ठाकरे ब्रांड को फिर से एकजुट कर मराठी वोट बैंक को मजबूत कर सकता है। राजनीति के पंडित कह रहे हैं। “यह गठजोड़ भाजपा और महाविकास गठबंधन दोनों के लिए सिरदर्द बन सकता है।”
अब पूरा महाराष्ट्र यह देखना चाहता है कि 5 जुलाई को क्या वाकई दोनों भाई एक मंच पर आते हैं। क्या यह सिर्फ आंदोलन होगा या भविष्य की राजनीति की जमीन तैयार करेगा? क्या मराठी अस्मिता का मुद्दा राज्य की सियासत को नई दिशा देगा? मुंबई की सड़कों पर “पहले बड़े भाई को रास्ता” कहकर राज ठाकरे ने रिश्ते का सम्मान जरूर दिखाया। लेकिन यह छोटा सा इशारा महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत भी हो सकता है।