मल्हारराव होल्कर, देवी अहिल्याबाई होल्कर (pic credit; social media)
Ahilyabai Holkar Tryst With Destiny: नवभारत आपके लिए इतिहास के पन्नों से अहिल्याबाई होल्कर की कहानी लेकर आया है। जिनमें उनकी जिंदगी के कुछ ऐसे किस्से है, जिनके बारे में लोग बहोत कम जानते है। इस कहानी के पहले एपिसोड में हमने उनके एक गांव की साधारण बच्ची से राज घराने की बहू बनने का सफर आपको बताया था। इस एपिसोड में हम उनके शौर्य और सूझबूझ के बारे में जानेंगे।
अहिल्याबाई का विवाह 8 वर्ष की आयु में खांडेराव होल्कर के साथ ईंसवी सन 1733 में संपन्न हुआ। नर्मदा की लहरों पर ढलते सूरज की सुनहरी छटा बिखरी हुई थी। ढोल-ताशों की गूंज, शहनाइयों की मधुर धुन और रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू से हवा महक रही थी। किले के ऊँचे बुर्जों पर रेशमी पताकाएँ लहरा रही थीं।
मुख्य द्वार पर मालवा के सरदार, दरबारी और ग्रामवासी पंक्तिबद्ध खड़े थे। और फिर, सजावट से सजी पालकी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। पालकी का पर्दा उठा—भीतर एक लड़की, जिसकी आँखों में निर्मलता और चेहरे पर चाँदनी सी कोमल आभा थी। यह थीं अहिल्या, अब खंडेराव होलकर की पत्नी, मालवा की नववधू।
जैसे ही पालकी रुकी, ढोल-ताशों की गूंज और तेज हो गई। दरवाजे पर स्वयं मल्हारराव होलकर खड़े थे। उनकी आँखों में स्नेह और गर्व का अनोखा संगम था।
उन्होंने कहा- स्वागत है, बहुरानी, यह अब आपका ही घर है, और यह प्रजा आपका परिवार। अहिल्या ने नर्मदा की ओर मुड़कर गहरा प्रणाम किया। उनके मन में एक ही संकल्प गूंज रहा था, “मैं इस घर और इस धरती का सम्मान बनकर रहूँगी।”उन्हें यह नहीं पता था कि आने वाले वर्षों में यह किला उनकी करुणा, न्याय और पराक्रम का साक्षी बनेगा, और उनका नाम इतिहास में अमर हो जाएगा।
अहिल्या को अपने पिता के घर से ही पढ़ने लिखने की शिक्षा मिली थी। और धर्मग्रंथों के प्रति श्रद्धा और बड़ो की सेवा का संस्कार भी। ससुराल में आकर उन्होंने अपने मधुर व्यवहार से सास-ससुर और परिवार के सभी लोगों का मन जीत लिया था। सास की देखरेख में उन्होंने परिवार तो ससुर की प्रोत्साहन से राज-काज की सारी जिम्मेदारी संभाल ली।
अहिल्याबाई संग खांडेकाव ने भी राजकाज में ली रुची
इस बीच उन्हें एक पुत्र हुआ मालेराव और एक बेटी मुक्ताबाई भी हुई। अहिल्याबाई की वजह से खांडेराव के भी स्वभाव में बदलाव आया। और वो भी राज्य के कार्यों में दिलचस्पी लेने लगे। योग्य शासन से प्रजा सुखी और समृद्ध थी। और अहिल्याबाई के तो सभी प्रशंसक थे। लेकिन तभी 1754 में भरतपुर के महाराजा सुरजमल जाट के खिलाफ कुम्हैर युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गये। और मात्र 29 वर्ष की आयु में अहिल्या विधवा हो जाती है।
इस घटना के बाद अहिल्याबाई ने सती होने का निश्चय किया था, लेकिन मल्हारराव होलकर ने उन्हें रोककर जीवन का नया उद्देश्य दिया।
मल्हारराव ने अहिल्या को सति होने से रोका
मल्हारराव होलकर ने उनसे बेहद भावुक शब्दों में कहा था,
“बेटी, मेरा बेटा मुझे छोड़ गया… जिसे मैंने पाल-पोसकर इस आशा में बड़ा किया था कि वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। अब क्या तुम भी मुझे छोड़ दोगी? क्या तुम चाहती हो कि मैं इस विशाल साम्राज्य में अकेला रह जाऊँ? अगर तुम्हें जाना ही है, तो पहले मुझे जाने दो, क्योंकि तुम्हारे बिना मैं कैसे जी पाऊँगा?”
इन शब्दों ने अहिल्याबाई के मन को गहराई से छू लिया। उन्होंने सती का विचार त्याग दिया और यहीं से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ—जहाँ वे एक आदर्श विधवा से आगे बढ़कर मालवा की न्यायप्रिय और लोककल्याणकारी रानी बनीं।
अहिल्याबाई ने पूरी कर्मठता से होल्कर राज्य की बागडौर अपने हाथों में संभाल ली। लेकिन कुछ समय बाद 1766 में मल्हारराव भी चल बसे। ऐसी परिस्थिती में अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालेराव को राजगद्दी सौंपी लेकिन, मालेराव ज्यादा समय के लिए राज नहीं कर पाए।
राजगद्दी संभालने के कुछ समय बाद ही मार्च 1767 में वो ऐसे बिमार पड़े कि फिर उठ न सकें। और अप्रैल 1767 में मात्र 22 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। अपने एकलौते बेटे की मृत्यु का अहिल्याबाई को अपार दुख हुआ। लेकिन प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य ध्यान कर उन्होंने अपने आंसू पोछ लिए और राजकाज में लग गई।
इसी समय होल्कर राज्य के एक पुराने अधिकारी चंद्रचुड़ ने पेशवा माधवराव के विश्वासपात्र रघोबा को पत्र लिखा और कहा, ”होल्कर राज्य इस समय स्वामीहिन है। तुरंत आईए अच्छा मौका है।”
अहिल्याबाई को इस षडयंत्र का पता लग गया। उन्होंने घोषणा करवा दी की होल्कर राज्य की संपूर्ण सत्ता उन्होंने अपने हाथ में ले ली है।अहिल्याबाई का एक किस्सा काफी प्रचलित है जहां उन्होंने एक पेशवा को बिना तलवार के मात दे दी। इस कहानी के बारे में हम जानेंगे नेक्स्ट एपिसोड (15 अगस्त) में। तब तक बने रहिए नवभारत की इस सीरीज ‘ लोकमाता देवी अहिल्याबाई’ में।