डागा अस्पताल नागपुर ( सोर्स: सोशल मीडिया)
नागपुर: पिछले कुछ वर्षों से विदर्भ सहित राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज सहित अस्पतालों में डॉक्टरों सहित अन्य प्रशासकीय पदों पर भर्ती नहीं होने से व्यवस्था पर असर पड़ा है। अपर्याप्त संसाधनों के बीच मरीजों को सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है। उम्मीद थी कि बजट में निधि का प्रावधान कर पद भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी लेकिन एक बार फिर निराशा ही हाथ लगी है।
10 मार्च को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार बजट किया। इसमें नये मेडिकल कॉलेजों में भी भर्ती का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर असर पड़ने के आशंका जताई जा रही है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैद्यकीय शिक्षा के लिए बजट निराशाजनक रहा है। वर्तमान में मैन पावर की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है। सरकार का ध्यान आउट सोर्सिंग पर ज्यादा है। इससे व्यवस्था पर परिणाम हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों सहित ग्रामीण केंद्रों में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। वर्षों से पदों की संरचना नहीं बदली गई है।
नागपुर विभाग के 6 जिलों के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 35 फीसदी पद खाली हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों के मंजूर 260 पदों में से 169 सेवारत हैं। यानी 91 पद रिक्त पड़े हैं। जिला अस्पताल, ग्रामीण अस्पतालों में सर्जन, मेडिसिन डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को सिटी में रेफर किया जाता है।
इस वजह से शहरी भागों के सरकारी अस्पतालों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। नागपुर के शासकीय दंत महाविद्यालय से संलग्नित डेंटल सुपरस्पेशलिटी में 111 स्थायी और 22 पद ठेकेदारी पद्धति से भरे जाने हैं लेकिन अब तक मंजूरी की प्रतीक्षा की जा रही है।
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डागा अस्पताल में बनाये जाने वाले मेट्रो ब्लड बैंक में कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव है। वर्षों से प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल रही है। भर्ती को लेकर बजट में कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है। इस हालत में यह वर्ष भी गुजर जाने की उम्मीद है।