मूर्तिकारों के हाथों से सजीव हो रही महालक्ष्मी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Gondia District: दिवाली का पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे-वैसे बाजार में ग्राहकों की चहल-पहल बढ़ रही हैं। लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में इस बार दिपोत्सव के खर्च में करीब 20 से 25 प्रश। तक वृध्दि होने का अनुमान हैं। अक्टूबर महीने की 18 अक्टूबर से दिवाली पर्व हैं, इस पर्व के लिए कुम्हार समाज दिए व महालक्ष्मी की मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे गए हैं। इसके मद्देनजर शहर के बाजार भी गुलजार हुए हैं। दुकानदारों द्वारा दिवाली में लगने वाली सजावटी सामग्री, रंगबिरंगी विद्युत सिरीज, आकर्षक लाईटिंग वाले आकाश दीप, अलग-अलग रंगों की रंगोली आदि अपने दुकानों में सजा रखी है जिसे देखकर ग्राहक आकर्षित हो रहे हैं।
लेकिन इन सामग्री की कीमतों में लगभग 25 से 30 प्रतिशत की वृध्दि होने के बाद भी नागरिक इसे खरीद रहे है। ग्राहक भी अपनी पसंद के अनुसार दुकानों पर पहुंचकर खरीदारी करने में जुट गए हैं। एक ओर लोगों ने अपने घरों की सफाई, रंगरोगन व पेंटिंग करना शुरू कर दिया है वहीं शहर के अनेक मंदिरों में लाइटिंग लगाकर रोशनाई की व्यवस्था की जा रही है।
प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में मिट्टी के मूर्तियों की मांग बढ़ी है। लेकिन महालक्ष्मी की मूर्ति का निर्माण करने के लिए जो मिट्टी लगती है उसके दाम तीन गुना बढ़ गए है। पहले यह मिट्टी मात्र 70 रु. प्रति किलो ग्राम मिलती थी, मगर अब उसके दाम 200 से 210 रु. प्रति किलोग्राम हो गए हैं। यही नहीं मूर्ति के रंगरोगन के लिए लगनेवाले पेंट और अन्य सामग्री में भी इसी प्रकार की वृद्धि हुई है। कारीगर केवल मूर्तियाँ नहीं बनाते, वे उनमें भावना, भक्ति और सौंदर्य भी भरते हैं। मूर्ति की आंखों में करुणा, हाथों में आशीर्वाद और चेहरे पर मधुर मुस्कान उकेरते समय वे देवी को सजीव करने का प्रयास करते हैं। यह उनके लिए सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सृजन का कार्य होता है।
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जिले में दिवाली पर्व को लेकर मूर्तिकार महालक्ष्मी की मूर्तियां व मिट्टी के दिए बनाने में व्यस्त है। दिवाली का पर्व प्रकाश, आनंद और आस्था का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर हर घर में महालक्ष्मी माता की पूजा की जाती है। दीपावली नजदीक आते ही देशभर के कारीगर और मूर्तिकार महालक्ष्मी की सुंदर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुट जाते हैं। उनके कुशल हाथों से बनी ये मूर्तियां भक्तों के घरों में समृद्धि, सौभाग्य और प्रकाश का संदेश लेकर आती हैं।
दिवाली से कुछ सप्ताह पहले ही मूर्तिकारों की गलियां रंगों, मिट्टी और श्रद्धा की खुशबू से महक उठती हैं। कारीगर दिन-रात मेहनत कर महालक्ष्मी, गणेश और कुबेर की मूर्तियां तैयार करते हैं। कोई मूर्ति पर स्वर्ण रंग का लेप चढ़ा रहा होता है, तो कोई बारीक अलंकरण कर रहा होता है।