
धान कुटाई के बढ़ते खर्च से किसान त्रस्त (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Gadchiroli Farmers: गड़चिरोली जिले में खरीफ सत्र के दौरान बोई गई धान फसल की कटाई पूरी हो चुकी है और अब किसान हल्की व मध्यम प्रजाति के धान की कुटाई में जुटे हुए हैं। हालांकि इस वर्ष कुटाई का खर्च प्रति बोरा 100 रुपये तक पहुंच जाने से किसान वर्ग गंभीर वित्तीय संकट में फंस गया है। धान कुटाई के लिए अन्य राज्यों से थ्रेसर मशीन मालिक खेती वाले क्षेत्रों में पहुंचकर करीब एक माह तक डेरा जमाए रहते हैं। वे स्थानीय मजदूरों को साथ लेकर कुटाई का कार्य करते हैं।
खेतों में आधुनिक यंत्रों के उपयोग से घंटों का काम अब कुछ ही मिनटों में पूरा हो रहा है। धान की कटाई से लेकर कुटाई तक का पूरा कार्य अब मशीनों के जरिए किया जा रहा है, जिससे पारंपरिक पद्धतियां इतिहास बनती जा रही हैं। मशीन मालिक प्रतिदिन 100 से 150 बोरा धान की कुटाई आसानी से कर लेते हैं। इस कार्य के लिए मजदूरों को प्रति बोरा लगभग 45 रुपये मजदूरी दी जाती है। वहीं, कुटाई का कुल खर्च हर वर्ष बढ़ता जा रहा है।
थ्रेसर मशीन मालिकों का कहना है कि डीजल के बढ़ते दाम और मशीन के रखरखाव पर बढ़ते खर्च के कारण कुटाई दर बढ़ाना मजबूरी बन गया है। पहले खेतों के बीच बैलगाड़ी और बैलों की कतार लगाकर धान की कुटाई की जाती थी, लेकिन अब यह पद्धति पूरी तरह बंद हो चुकी है। आधुनिक युग में विभिन्न यांत्रिक मशीनें उपलब्ध होने से किसान इन्हीं का उपयोग कर रहे हैं।
किसान नीलेश गोहणे ने बताया कि धान की कटाई और गट्ठे बांधने पर प्रति एकड़ लगभग 6 हजार रुपये का खर्च आता है। अब कुटाई के दाम भी बढ़ गए हैं। थ्रेसर मशीन से हर वर्ष कुटाई करानी पड़ती है, लेकिन इस वर्ष प्रति बोरा 100 रुपये देने पड़ रहे हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है। उन्होंने कहा कि उत्पादन लागत के अनुरूप समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किसान संकट में हैं और खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।
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धान कुटाई के लिए खेत से थ्रेसर मशीन तक फसल आसानी से पहुंचाई जा सके, इसके लिए पगडंडी का मिट्टीकरण किया गया था। लेकिन कई स्थानों पर उचित मजबूतीकरण नहीं होने से पगडंडियों की स्थिति विकट हो गई है। इससे आवागमन में दिक्कतें बढ़ गई हैं और धान कुटाई के कार्य में भी विलंब हो रहा है।






