
प्रतीकात्मक तस्वीर
चंद्रपुर. निर्माणाधीन एक सीमेंट उद्योग के लिए लाइमस्टोन उत्खनन हेतु आवश्यक जमीन की पूर्तता हेतु कोरपना तहसील के कुछ गांवों में आदिवासियों की जमीन को जबरन ख़रीदकर उसे सीमेंट उद्योग को सौंपने का गोरखधंधा सामने आया है.
जो आदिवासी किसान अपनी जमीन बेचने को तैयार नहीं है, या उन्होंने अपनी जमीन पर कर्ज उठाया है, ऐसे किसानों के कर्ज का भुगतान कर उनकी जमीनों का राजस्व अधिकारियों की मदद से परस्पर फेरफार करने के भी क्रोधजनक मामले सामने आ रहे है.
कोरपना तहसील के ग्राम परसोड़ी, गोविंदपुर, कोठोडा बु. कोठोडा खुर्द आदि गांवों के किसानों ने आज इस गोरखधंधे का यहां खुलासा किया. उन्होंने इस संदर्भ में जिलाधिकारी से मिलकर उन्हें अपनी व्यथा स्पष्ट की तथा उनके साथ हो रहे अन्याय से अवगत किया.
किसानों द्वारा जिलाधिकारी को दी जानकारी के अनुसार यवतमाल जिले के वणी तहसील के ग्राम मुकुटबन में एमपी बिर्ला सीमेंट का उत्पादन लेने वाला आरसीसीपीएल मुकुटबन यह उद्योग फिलहाल निर्माणाधीन अवस्था में है. इस उद्योग के लिए लाइमस्टोन उत्खनन हेतु कोरपना तहसील के ग्राम परसोड़ी समेत आसपास के 3 अन्य गांवों से सटी जमीन लीज पर मिली है. लीज की यह प्रक्रिया 5 अगस्त को पूर्ण हुई है.
इस उद्योग को दी जा रही लीज की जानकारी देने हेतु 22 सितंबर को जिलाधिकारी कार्यालय में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल तथा आरसीसीपीएल की ओर से एक जनसुनवाई भी ली गयी.
ग्राम परसोड़ी के ग्रामीणों का आरोप है कि, यह जनसुनवाई महज एक दिखावा भर था, इस जनसुनवाई में शामिल लोगों का प्रकल्प पीड़ित गांवों से कोई संबंध नहीं था. उन्हें परसोड़ी के निवासियों के नाम देकर जनसुनवाई में शामिल किया गया था, उनके नाम के बोगस ईमेल आईडी बनाये गए थे, तथा उनके नाम के आगे किये गए हस्ताक्षर भी फर्जी ही थे.
ग्रामीणों का आरोप है कि, यह फर्जी लोग 2 दलालों द्वारा उपस्थित किये गए थे. उन्होंने आरोप लगाया कि, यह दोनों दलाल ग्राम परसोड़ी समेत आसपास के चारों गांव के आदिवासियों की जमीनों को जबरन खरीदने का काम कर रहे है, यह काम विगत 3 वर्ष से जारी है. लोगों को बहला फुसलाकर यह जमीन खरीदी जा रही है, जमीन की कीमत के बदले में वे किसानों को महज सात, आठ लाख रुपये प्रति एकड़ भाव दे रहे है. यही जमीन दलालों द्वारा निर्माणाधीन सीमेंट कंपनी को 15 लाख रुपये प्रति एकड़ के दाम से बेची जा रही है.
किसानों का कहना है कि, सीमेंट उद्योग, जिला प्रशासन के राजस्व विभाग में कार्यरत कुछ अधिकारियों की सांठगांठ से यह गोरखधंधा चल रहा है. जो किसान अपनी जमीन बेचने को तैयार नहीं है, उनकी जमीन का राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से परस्पर फेरफार किया जा रहा है, किसानों के नाम सात बारा प्रमाणपत्र से हटाए जा रहे है. जिन किसानों द्वारा अपनी जमीन पर कर्ज लिया हुआ है, उनके कर्ज का भी परस्पर भुगतान कर फेरफार करते हुए उनके नाम सात बारा से हटाए जा रहे है.
किसानों का कहना है कि, भूमि अधिग्रहण जैसी प्रक्रिया को टालने के लिए ही यह सब किया जा रहा है ताकि उद्योग को सस्ते दामों में जमीन उपलब्ध हो और इसके बदले में उद्योग को जमीन धारक को कोई रोजगार नहीं देना पड़े.
ग्रामीणों ने बताया कि, ग्राम परसोड़ी तथा आसपास के चारों गांव पेसा कानून के दायरे में आते है, ऐसे गांवों की जमीन किसी उद्योग को अधिग्रहित करनी हो तो उसे 2013 के लार्रा एक्ट के तहत करनी होती है, इस एक्ट के तहत अधिग्रहित जमीन को बाजारमूल्य से तीन गुना दाम देना अनिवार्य होता है. यही सब टालने के लिए ग्रामीणों की निरक्षरता का अनुचित लाभ लेकर उद्योग द्वारा ही दलालों के जरिये से यहां किसानों की जमीन जबरन हथियाने का काम चल रहा है. ग्रामीणों ने खुलासा करते हुए बताया कि, दलालों ने ग्राम परसोड़ी तथा आसपास के चारों गांवों की अब तक 160 एकड़ जमीन किसानों से खरीद ली है.
धनराज कोवे, गंगाधर कुंटावार तथा अरुण मैदमवार की अगुवाई में जिलाधिकारी से मिले ग्रामीणों के शिष्टमंडल में रामचंद्र सिडाम, सचिन सिडाम, यशवंत सिडाम, पीताम्बर सिडाम, रमेश सिडाम, नितेश कोटनाके, सोनेराव पवार, राजू आत्राम, अर्जुन मड़ावी, प्रकाश आत्राम आदि शामिल थे. सीमेंट उद्योग को लीज में दी गयी जमीन की सम्पूर्ण अधिग्रहण प्रक्रिया पूर्ण किये बगैर इस क्षेत्र में माइनिंग ऑपरेशन शुरू करने की अनुमति नहीं देने की गुजारिश ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से की है.






