
चंद्रपुर न्यूज, फोटो- नवभारत
Chandrapur Municipal Election 2025: महानगरपालिका चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन कांग्रेस खेमे में भारी गहमागहमी और नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला। टिकटों के बंटवारे को लेकर चली लंबी खींचतान के बाद जो तस्वीर साफ हुई है, उसने कांग्रेस के भीतर की आंतरिक गुटबाजी को सतह पर ला दिया है। इस पूरी प्रक्रिया में सांसद प्रतिभा धानोरकर और पार्टी के जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे का पलड़ा भारी रहा, जबकि राज्य के कद्दावर नेता विजय वडेट्टीवार अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में पूरी तरह विफल साबित हुए।
कांग्रेस ने अंतिम क्षणों तक अपने अधिकृत प्रत्याशियों की आधिकारिक सूची जारी नहीं की थी, जिससे इच्छुक उम्मीदवारों की धड़कनें तेज थीं। नामांकन की समय सीमा समाप्त होने के बाद जब स्थिति स्पष्ट हुई, तो यह सामने आया कि वडेट्टीवार समर्थक कई दिग्गज कार्यकर्ताओं के टिकट काट दिए गए हैं। टिकट न मिलने वाले प्रमुख नामों में नंदू नागरकर, सुनीता लोढ़या, प्रवीण पडवेकर, सकीना अंसारी, वनिता खनके और प्रशांत दानव जैसे कद्दावर नेता शामिल हैं। ये वे कार्यकर्ता हैं जो पिछले कई वर्षों से मनपा की राजनीति में कांग्रेस का झंडा बुलंद करते आ रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, प्रत्याशियों के चयन के लिए पिछले तीन दिनों से गहन मंथन चल रहा था। विधान परिषद सदस्य सुधाकर अड़बाले के निवास पर आयोजित इन बैठकों में सांसद प्रतिभा धानोरकर, सुभाष धोटे और विजय वडेट्टीवार के बीच कई दौर की बातचीत हुई। चूंकि इस बार कांग्रेस का किसी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं हुआ था, इसलिए सभी 66 सीटों पर प्रत्याशियों का चयन करना एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि, चयन प्रक्रिया के अंत में धानोरकर और धोटे की जोड़ी ने अपनी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में सफलता हासिल की।
नामांकन के अंतिम दिन भी कई इच्छुक प्रत्याशी ‘एबी फॉर्म’ की प्रतीक्षा में अपने नेताओं के संपर्क में थे। उन्हें लगातार आश्वासन दिया जा रहा था कि जल्द ही उन्हें फॉर्म मिल जाएगा। लेकिन जैसे ही नामांकन का समय समाप्त हुआ, विजय वडेट्टीवार ने अपनी विवशता जाहिर करते हुए हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके समर्थकों की अनदेखी की गई है, जिससे सालों से पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं में भारी निराशा और गुस्सा व्याप्त है।
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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि टिकट बंटवारे में हुई यह अनदेखी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है। निष्ठावान कार्यकर्ताओं की नाराजगी कांग्रेस के ‘मिशन 66’ में बाधक बन सकती है। अब देखना यह होगा कि क्या कांग्रेस नेतृत्व चुनाव से पहले इस आंतरिक कलह को शांत कर पाता है या फिर यह असंतोष विपक्षी दलों के लिए जीत का रास्ता साफ करेगा।






