प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Bhandara News In Hindi: भंडारा जिले की ग्राम रोजगार सहायक संगठन ने 25 अगस्त से कामबंद आंदोलन शुरू कर दिया है। पिछले पखवाड़े से जारी इस आंदोलन का असर अब पूरे जिले में दिखाई देने लगा है। 547 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के सभी कार्य पूरी तरह ठप हो चुके हैं। रोजगार सहायकों ने सरकार से लंबित मांगों को लेकर मोर्चा खोल दिया है और चेतावनी दी है कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो आंदोलन और भी उग्र होगा।
ग्राम रोजगार सहायकों ने अपनी कई पुरानी मांगों को सामने रखा है। इनमें 3 अक्टूबर 2024 के निर्णय को लागू करना, 11 महीने का संशोधित मानधन प्रदान करना, कामगारों को पूर्णकालिक दर्जा देना, 2016 से लंबित अल्पाहार व यात्रा भत्ता जारी करना और 8 मार्च 2021 के अनुसार प्रोत्साहन मानधन का भुगतान करना शामिल है। संगठन का कहना है कि इन मांगों पर सरकार बार-बार आश्वासन देती रही है, लेकिन ठोस कार्रवाई आज तक नहीं हुई।
ग्राम रोजगार सहायकों ने आंदोलन को और तेज करने का निर्णय लिया है। संगठन के जिला अध्यक्ष सेवकराम नागफासे ने बताया कि प्रशासन पिछले पखवाड़े से चल रहे आंदोलन की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसके चलते 11 सितंबर को सभी ग्राम रोजगार सहायक भंडारा पंचायत समिति से लेकर जिला परिषद कार्यालय तक “भीख मांगो आंदोलन” करेंगे। सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक चलने वाले इस अनोखे आंदोलन का उद्देश्य प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना है।
संगठन ने स्पष्ट किया है कि यदि सरकार ने जल्द ही सकारात्मक निर्णय नहीं लिया तो 15 सितंबर को नागपुर स्थित मनरेगा आयुक्तालय पर परिवार सहित राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा। इससे पूरे राज्य में मनरेगा की गति प्रभावित हो सकती है।
ग्राम रोजगार सहायक गांवों में मनरेगा योजना को लागू करने की सबसे अहम कड़ी हैं। इनके बिना गरीब और सीमित साधनों वाले ग्रामीणों तक रोजगार पहुंचाना संभव नहीं है। आंदोलन के चलते जिले की सभी ग्राम पंचायतों में मनरेगा कार्य रुक गए हैं। प्रशासन ने यदि जल्द हस्तक्षेप नहीं किया तो इसका असर रोजगार पाने वाले हजारों मजदूर परिवारों पर पड़ेगा।
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संगठन का कहना है कि लंबे समय से मानधन और भत्ते नहीं मिलने से उनका मनोबल गिर रहा है। सहायकों ने मांग की है कि शासन 3 अक्टूबर 2024 के निर्णय के अनुसार मानधन का भुगतान करे, लंबित भत्तों की राशि तत्काल जारी करे और उन्हें पूर्णकालिक दर्जा प्रदान करे। साथ ही, 2011 के निर्णयानुसार कार्रवाई के अधिकार मुख्य कार्यपालन अधिकारी को दिए जाएं।
यदि सरकार ने त्वरित कदम नहीं उठाए तो मनरेगा की रफ्तार थमने से न केवल जिले के मजदूर प्रभावित होंगे, बल्कि ग्रामीण विकास कार्य भी गंभीर संकट में आ जाएंगे।