खांबतालाब की जगह पर बनी दुकानें (फोटो नवभारत)
Bhandara Khambtalab Gandhi Memories: आज भी पूरे विश्व महात्मा गांधी के आदर्शों को पूजता है, उनके विचारों और कार्यों के आगे नतमस्तक होता है। हर स्थान पर जहां उनके चरण पड़े, वहां स्मारक खड़े किए और स्मृतियां संजोई जाती हैं। लेकिन महाराष्ट्र के भंडारा शहर का खांबतालाब मैदान, जिसे महात्मा गांधी के पदस्पर्श का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उस स्थान पर अब खाऊ गली के लिए दुकानें बनाई जा रही हैं।
भंडारा शहर को गांधीजी का दो बार प्रत्यक्ष पदस्पर्श मिला था। 2 फरवरी 1927 को खांबतालाब मैदान पर उनकी सभा आयोजित हुई थी। 10 नवंबर 1933 को वे पुनः भंडारा आए। उस समय उन्होंने हरिजनों के लिए कुएं और मंदिरों के द्वार खोलने हेतु विशेष प्रयास किए।
खांबतालाब के बहिरंगेश्वर मंदिर के पास स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर के प्रांगण में उन्होंने हरिजन प्रवेश सुनिश्चित कर सामाजिक समानता का संदेश दिया। मगर आज, जिस मैदान को उनके चरणस्पर्श का गौरव प्राप्त है, उसी स्थान पर अब ‘छप्पन भोग’ नामक खाऊ गली बनाई जा रही है। वहां दुकानों की कतारें खड़ी हो रही हैं और गांधीजी की पावन स्मृतियां धीरे-धीरे मिटती जा रही हैं।
31 करोड़ के सौंदर्याकरण में गांधी का नाम तक नहींः पूर्वजों के त्याग का स्मरण नई पीढ़ी का दायित्व था। लेकिन खांबतलाव में गांधीजी के पदस्पर्श की स्मृति को जीवित रखने का कोई प्रयास दिखाई नहीं देता।
महात्मा की तस्वीर हर भारतीय नोट पर अंकित है, परंतु खांबतालाब के सौंदर्गीकरण के लिए खर्च किए जा रहे 31 करोड़ रुपये में उनकी स्मृति के संरक्षण हेतु एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया।
खांबतालाब में सभागृह, फव्वारे और हरे-भरे वृक्ष लगाने की योजना है। मध्यभाग में 51 फीट ऊंची श्रीराम मूर्ति भी स्थापित की गई है। लेकिन वहां गांधीजी का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। उनकी स्मृति के लिए साधारण-सा शिलालेख तक नहीं लगाया गया।
गांधीजी केवल व्यक्त्ति नहीं थे, वे विचार थे। वे सत्य, अहिंसा और नैतिकता के प्रवाह का मूर्त रूप थे। उन्होंने लाखों लोगों के अंतःकरण में स्वतंत्रता की ज्योत प्रज्वलित की। इस देश के लिए अनगिनत पीढ़ियों ने त्याग और बलिदान दिया।
यह भी पढ़ें:- कहीं होगा दहन तो कहीं पूजे जाएंगे दशानन, दशहरा पर आदिवासी बहुल इलाके में देखेगी अनोखी परंपरा
उनके इस अद्भुत योगदान की स्मृति को जीवित रखने के लिए इस मैदान पर गजभर जमीन भी नहीं मिल सकी। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए न कोई जनप्रतिनिधि आगे आया, न कोई स्वतंत्रता सेनानी और न ही कोई गांधीवादी।
खांबतालाब में आज आधुनिक सुविधाओं और मूर्तियों से सौंदर्याकरण तो किया जा रहा है, लेकिन जिस स्थान पर इतिहास रचा गया, जहां गांधीजी के चरणस्पर्श से लोगों का हृदय आल्हादित हुआ था, उस स्थान की स्मृतियों को संरक्षित करने की आवश्यकता किसी ने नहीं समझी।
गांधीजी के पदस्पर्श से पावन हुए इस शहर के नागरिकों का यह ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक, नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है कि वे उनकी स्मृति का सम्मान करें और उसे सुरक्षित रखें। खांबतालाब में गांधीजी की स्मृति को संजोने का समय यही है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके विचारों की महत्ता अनुभव कर सकें और उनका प्रकाश सदा बना रहे।