बाजीराव पेशवा की मूर्ति (सोर्स: सोशल मीडिया)
Bajirao Peshwa Jayanti: भारतीय इतिहास में यूं तो कई योद्धाओं का नाम उनकी वीरता और बहादुरी के लिए लिया जाता है, लेकिन पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-1740) उन चंद सेनापतियों में से एक हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी युद्ध नहीं हारा। 20 वर्षों में लड़े गए 41 युद्धों में उनकी रणनीति इतनी अनोखी थी कि ब्रिटिश इतिहासकारों ने उन्हें ‘भारतीय नेपोलियन’ तक कहा।
बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त 1700 ई. में चितपावन कुल के ब्राह्मण परिवार में महाराष्ट्र के नासिक जिले के सिन्नर में हुआ था। उनको ‘बाजीराव बल्लाल’ तथा ‘थोरले बाजीराव’ के नाम से भी जाना जाता है। आज उनकी जयंती है। आइए जानते है उनके अनोखे रणकौशल और उनकी मौत जुड़ी रहस्यमयी कहानी के बारे में…
शिवाजी महाराज के निधन के बाद मराठा साम्राज्य कई चुनौतियों से जूझ रहा था। 1720 में जब बाजीराव मात्र 20 वर्ष की आयु में पेशवा बने, तब साम्राज्य को संगठित करने और उत्तर की ओर बढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी।
इतिहासकारों का कहना है कि बाजीराव ने मराठा साम्राज्य की सेना को पारंपरिक युद्ध से अलग दिशा दी। उन्होंने गनिमी कावा (गुरिल्ला युद्ध) विकसित किया और घुड़सवार सेना पर विशेष ज़ोर दिया।
पैदल सेना या भारी तोपखाने के बजाय, उनकी सेना बिजली की गति से आगे बढ़ती और दुश्मन पर अचानक हमला कर देती। दुश्मन की आपूर्ति लाइन काटना और उसका मनोबल गिराना उनकी सबसे बड़ी रणनीति थी।
बाजीराव पेशवा (सोर्स: सोशल मीडिया)
गनिमी कावा (गुरिल्ला युद्ध) दुश्मनों को हराने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक रणनीति है। इसमें दुश्मनों पर अचानक हमला करना, उनकी रसद बंद करना और पहाड़ी या दूरदराज के इलाकों में छिपकर लड़ना शामिल है।
इतिहासकारों की मानें तो बाजीराव की सेना एक दिन में 40 से 50 मील की दूरी तय करती थी। यही कारण था कि वह दुश्मन पर अचानक हमला करके विजय प्राप्त करने में सक्षम थे।
बाजीराव पेशवा ने अपने काल में निज़ाम-ए-हैदराबाद, मुगल सम्राट और मध्य भारत के कई राजाओं को पराजित किया। उनकी रणनीति के आगे बड़े-बड़े साम्राज्य असहाय साबित हुए। बुंदेलखंड के छत्रसाल ने भी उन्हें अपना रक्षक माना।
बाजीराव पेशवा की मृत्यु रहस्यमयी तरीके से हुई। भारतीय इतिहास में मुताबिक बाजीराव की मृत्यु युद्धभूमि में नहीं हुई थी। अप्रैल 1740 में वह उत्तर भारत के सबसे बड़े अभियान पर गए थे। इस साल 26 जनवरी को पूना के पार्वती बाग़ में मस्तानी को बंदी बना लिया गया।
जब यह सब हो रहा था तब बाजीराव पेशवा निज़ाम के बेटे नासिरजंग को गोदावरी नदी के पास युद्ध में लोहा ले रहे थे। इस दौरान मस्तानी के बंदी बनाए जाने की सूचना से उनको गहरा आघात लगा।
वे 5 अप्रैल से मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में सनावद के पास नर्मदा नदी के तट पर रावेरखेड़ी में शिविर में थे। 28 अप्रैल को उनकी तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई और उसी दिन 40 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। कहा जाता है कि उन्हें तेज बुखार हुआ था। कुछ विद्वान इसे मलेरिया मानते हैं, जबकि कुछ इसे लू का प्रभाव बताते हैं।
मध्य प्रदेश के रावेरखेड़ी में स्थित बाजीराव पेशव की समाधी (सोर्स: सोशल मीडिया)
जिस स्थान पर बाजीराव ने अंतिम सांस ली, वह उनका समाधि स्थल है और थोड़ी दूर पर नदी तट पर जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था, एक वेदिका बनी हुई है। नानासाहेब पेशवा ने नवंबर 1740 में राणोजी शिंदे को रावेरखेड़ी में बाजीराव पेशवा की स्मृति में एक ‘वृंदावन’ बनाने का आदेश दिया।
नानासाहेब पेशवा ने इस समाधि स्थल की गरिमा और पवित्रता बनाए रखने के लिए जनवरी 1751 में नासिक निवासी वेदमूर्ति दिगंबरभट को उनके दस शिष्यों के साथ समाधि स्थल पर रहकर निरंतर अग्निहोत्र करने का आदेश दिया।