
माता सीता की यादों की खुशबू,
Melghat Medicinal Herbs: मेलघाट के हरे-भरे जंगलों में पाई जाने वाली ‘सीता की मेहंदी’ पौधा आदिवासी संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इस पौधे का उपयोग शरीर पर गोदना (टैटू) गुदवाने की परंपरा और प्रकृति के साथ गहरे संबंध के प्रतीक के रूप में किया जाता है। नाजुक पत्तियों वाला यह जंगली पौधा न केवल त्वचा पर सुंदर आकृतियाँ उभारता है, बल्कि इसमें प्रचुर औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। भगवान के प्रति श्रद्धा और अपनी संस्कृति के प्रतीक के रूप में आदिवासी समाज में शरीर पर गोदना गुदवाने की परंपरा प्रचलित रही है।
यह कला शरीर की सुंदरता बढ़ाने के साथ-साथ प्रकृति में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों से प्रेरित होकर विकसित हुई है। मेलघाट के जंगलों में पाई जाने वाली इस पौधे की नाजुक और जटिल पत्तियाँ जब त्वचा पर छाप की तरह लगाई जाती हैं, तो उनके सुंदर पैटर्न त्वचा पर उभर आते हैं। इस पौधे को ‘सीता की मेहंदी’ कहा जाता है। इसका रंग हल्का सफेद और हरा होता है। इसे ‘जंगली मेहंदी’ भी कहा जाता है, परंतु आदिवासी समाज में इसे ‘सीता की मेहंदी’ नाम से ही जाना जाता है।
मेलघाट के कोरकू और गोंड आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक हैं। यहाँ रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा भी की जाती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, श्रीराम और माता सीता वनवास के दौरान मेलघाट क्षेत्र में आए थे। कहा जाता है कि सीता माता आदिवासी महिलाओं के साथ रहती थीं और उन्हें पेड़ों व लताओं का गहन ज्ञान था। सीता इन्हीं पौधों से अपने हाथों पर मेहंदी रचाती थीं। इसी कारण इस पौधे को ‘सीता की मेहंदी’ कहा जाने लगा।

चिखलदरा निवासी प्रमिला कंदिलवार बताती हैं, “बचपन में हम नदी किनारे पत्थरों के बीच पाए जाने वाले इस पौधे से अपने शरीर पर डिज़ाइन बनाया करते थे। आज भी गाँव के बच्चे इस परंपरा को निभा रहे हैं।”
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आदिवासी लोग ‘सीता की मेहंदी’ का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में करते हैं। बुखार होने पर इस पौधे का काढ़ा पिलाया जाता है, जिससे शरीर का ताप कम होता है। यह काढ़ा शारीरिक दर्द में भी राहत देता है। टैटू बनवाने से त्वचा पर बने घावों के उपचार में इसकी पत्तियाँ प्रभावी दवा का काम करती हैं।
कंदिलवार ने बताया कि यह पौधा खुजली, फोड़े-फुंसियों और त्वचा संबंधी रोगों में भी उपयोगी है। प्रकृति से जुड़ी इस परंपरा ने मेलघाट की सांस्कृतिक धरोहर को आज भी जीवित रखा है।






