दरियापुर में कांग्रेस को बड़ा झटका (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Amravati News: दर्यापुर स्थित घनीवाला औद्योगिक समूह के निदेशक और कई वर्षों से कांग्रेस के प्रति समर्पित परिवार, सलीमसेठ घनीवाला, भाजपा में शामिल हो गए हैं। उनके भाजपा में शामिल होने को कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले, सांसद डॉ. अनिल बोंडे और विधायक राजेश वानखड़े की उपस्थिति में उन्होंने भव्य तरीके से पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा दिए गए ‘पथ अंत्योदय प्रण अंत्योदय’ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ के साथ, सलीम सेठ घनीवाला मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के विकासशील महाराष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। पार्टी प्रवेश समारोह वरिष्ठ भाजपा नेता बालासाहेब वानखड़े, महासचिव गोपाल चंदन, श्रीराम नेहर, मनीष कोरपे, गोकुल भडंगे की पहल पर आयोजित किया गया। सलीम दरियापुर नगर परिषद की पूर्व उपाध्यक्ष जुबेदाबाई घनीवाला के पुत्र हैं और उनके पिता, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जिकरभाई घनीवाला, कई वर्षों तक कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे।
हालांकि, सलीम घनीवाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले, सांसद डॉ. अनिल बोंडे के विचारों से प्रेरित होकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। कंप्यूटर इंजीनियर घनीवाला आने वाले समय में उद्योग, शिक्षा, अल्पसंख्यकों के विकास, मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष प्रयास आदि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए काम करेंगे।
घनीवाला के आने से दर्यापुर में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। उनके नेतृत्व में आने वाले समय में भाजपा द्वारा इस क्षेत्र में अल्पसंख्यकों का एक बड़ा संगठन तैयार किया जाएगा। इसके साथ ही उन्हें भाजपा की ओर से कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने की भी संभावना है।
तो उधर बुनियादी ढांचे के लिए लाखों रुपए की विकास निधि स्वीकृत की जाती है। इस निधि का उपयोग पेयजल, सड़क, सीवर, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, प्रकाश व्यवस्था जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए करने का प्रावधान है; लेकिन हकीकत में यह निधि स्थानीय राजनीति के कारण गांवों के विकास के बजाय फाइलों, बैठकों और राजनीतिक दांव-पेंचों में अटकी रहती है।
कई ग्राम पंचायतों में अधूरे प्रोजेक्ट्स की एक लंबी फेहरिस्त देखने को मिल रही है। कई गांवों में स्वीकृत कार्य वर्षों से अधूरे पड़े हैं। कहीं जल आपूर्ति टैंकों का निर्माण और जलमार्ग बिछाने का काम अधूरा पड़ा है, तो कहीं सड़कों का डामरीकरण आधा-अधूरा पड़ा है। कुछ जगहों पर सीवरेज निर्माण की गुणवत्ता इतनी खराब है कि मानसून में घरों में पानी घुसने की तस्वीर सामने आती है।
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अगर गांव स्तर पर सही योजना और पारदर्शिता के साथ धन का उपयोग किया जाए, तो गांवों की सूरत बदलने में देर नहीं लगेगी। लेकिन स्थानीय राजनीति और ठेकेदारों के स्वार्थ इस प्रक्रिया में बाधा बन रहे हैं। सरपंच, ग्राम पंचायत सदस्यों, प्रशासन और ठेकेदारों के बीच मतभेद और राजनीतिक गुटबाजी धन के उपयोग में बाधा डालती है।
कभी-कभी काम शुरू तो हो जाता है, लेकिन चुनाव नज़दीक आते ही ठेकेदार काम रोक देते हैं या प्रशासन भुगतान रोक देता है। इसका सीधा असर ग्रामीणों पर पड़ता है। धन स्वीकृत होने के बावजूद, कई गांवों में सड़कें कई सालों से अधूरी हैं, जलापूर्ति योजनाएं लागू नहीं हुई हैं। तो पैसा कहां जाता है, यही सवाल आम जनता पूछ रही है।