जस्टिस भूषण गवई की मां कमलाताई (सौजन्य-सोशल मीडिया)
अमरावती: देश के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में 14 मई को शपथ लेने जा रहे महाराष्ट्र के सपूत जस्टिस भूषण गवई अनुसूचित जाति के दूसरे और बौद्ध समाज के पहले जज होंगे। अमरावती के कांग्रेस नगर इलाके में अपने घर में जस्टिस गवई की मां, 84 वर्षीय कमलताई अपने बेटे को आशीवांद देते थक नहीं रहीं। उन्होंने कहा ‘मेरे बच्चे को तो मुकद्दर का सिकंदर बनना ही चाहिए ना?’ कमलताई, जो एक पूर्व स्कूल टीचर हैं, के लिए यह पल ऐतिहासिक है।
कमलताई के घर में एक पुरानी फाइल है, जिसमें उनके बेटे की यात्रा के दस्तावेज, हस्तलिखित नोट्स, पुरानी तस्वीरें और समाचार कटिंग्स संभालकर रखे गए हैं। यह फाइल उनके बेटे के जन्म से लेकर सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद तक की कहानी बयां करती है। 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं।
उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई (1929-2015), जिन्हें उनके अनुयायी और प्रशंसक दादासाहेब कहते थे, एक प्रसिद्ध आंबेडकरवादी नेता और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। अमरावती से लोकसभा सांसद रहे वरिष्ठ गवई ने 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में कार्य किया, जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी।
सामाजिक कार्यों की वजह से जस्टिस गवई के पिता को लंबे समय तक घर से बाहर रहना पड़ता था। उन्हें चिंता थी कि उनके बच्चे राजनेताओं के बच्चों की तरह बिगड़ जाएंगे। कमलताई ने तय किया कि जस्टिस गवई घर के कामों में उनकी मदद करें। इसमें खाना बनाना, बर्तन धोना, खाना परोसना और बाद में खेती करना और देर रात बोरवेल से पानी निकालना शामिल है। जस्टिस गवई की मां ने बताया कि 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान, भले ही हमारी आर्थिक स्थिति खराब थी, लेकिन सैनिक फ्रेजरपुरा इलाके में हमारे छोटे से घर में खाना खाते थे और भूषण कई कामों में मेरी मदद करता था।
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जस्टिस गवई ने ज्यादातर अपना बचपन अमरावती के फ्रेजरपुरा यहूदी बस्ती में बिताया, यहां पर उन्होंने 7वीं क्लास तक नगरपालिका मराठी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में समय बिताया। अमरावती के एक कारोबारी रूपचंद खंडेलवाल नगरपालिका स्कूल में उनके सहपाठी थे। उन्होंने बताया कि उस समय उनके पास एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसे बाद में फिर से बनाया गया और परिवार ने उसे बेच दिया। झुग्गी में अलग-अलग जातियों और धर्मों के मजदूर रहते थे। स्कूल में बेंच नहीं होने से सभी फर्श पर बैठते थे। भूषण मददगार विनम्र और वंचितों के प्रति दयालु थे।