आंबेडकरी आंदोलन राजनीतिक गठबंधन की छाया में (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Amravati News: जिले की तिवसा तहसील में आगामी पंचायत समिति और जिला परिषद चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। इस बीच एक तथ्य स्पष्ट है कि आंबेडकरवादी मतदाता आज भी निर्णायक शक्ति हैं, लेकिन उनके मतों का एकीकरण न होने के कारण यह ताकत अक्सर अन्य दलों के खाते में चली जाती है। तहसील के तीन जिला परिषद सर्कल और छह पंचायत समिति सर्कल में आंबेडकरी समाज के मतदाता निर्णायक संख्या में हैं। यदि इतिहास पर नज़र डालें तो लगभग तीस वर्ष पूर्व ‘रिपब्लिकन एकता प्रयोग’ (आंबेडकरी दलों का एकत्रीकरण) सफल रहा था।
उस समय कुऱ्हा सर्कल से सुरेश जाधव (बंजारा समाज) जिला परिषद सदस्य निर्वाचित हुए थे। इसके अलावा, भारिप (प्रकाश आंबेडकर) की उम्मीदवार कविता मनोहरे और प्रदीप बोके ने वरखेड पंचायत समिति सर्कल से प्रभावशाली स्थान प्राप्त किया था। बाद में तिवसा नगर पंचायत चुनाव में पूर्व विधायक यशोमती ठाकुर के गढ़ से मयुरी पुसाम ने ऐतिहासिक विजय दर्ज की।
हर वर्ष तिवसा में पंचशील दिवस के निमित्त आनंदवाड़ी परिसर में आयोजित पंचशील धम्म यात्रा और कौंडण्यपुर की भीम टेकड़ी पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हजारों आंबेडकरी अनुयायी एकत्र होते हैं। बावजूद इसके, यह जनसमर्थन आंबेडकरी दलों के वोटों में परिवर्तित नहीं हो पा रहा है।
इसका प्रमुख कारण है गुटबाज़ी, आपसी मतभेद और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा। कुछ स्थानीय नेता विभिन्न दलों से गठबंधन कर अपना व्यक्तिगत राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने में लगे हैं, जिससे आंदोलन की मूल विचारधारा पीछे छूट रही है।
वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का मत है कि यदि सभी आंबेडकरी संगठन और गुट विचारधारा के आधार पर एकजुट होकर उम्मीदवार खड़े करें, तो तिवसा तहसील के कई सर्कल में निर्णायक सत्ता हासिल की जा सकती है। यदि आंबेडकरी समाज विचार और मतों की एकता के साथ खड़ा होता है, तो तिवसा का राजनीतिक नक्शा पूरी तरह बदल सकता है। आगामी स्थानीय चुनाव आंबेडकरी आंदोलन के नए पुनर्जागरण की कसौटी साबित हो सकते हैं।
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सुरज लांडगे, केंद्रीय समिति सहसचिव, आंबेडकरवादी रिपब्लिकन पार्टी ने कहा “आज आंबेडकरी आंदोलन को नई ऊर्जा की आवश्यकता है, और यह ऊर्जा युवाओं की सक्रिय भागीदारी से ही आएगी। हमारा उद्देश्य डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की विचारधारा को पुनर्जीवित कर समाज को एकजुट करना है।”