(फोटो सोर्स सोशल मीडिया)
मुंबई : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मंगलवार तक दाखिल किए गए उम्मीदवारों के नामांकन की छंटाई के बाद चुनाव आयोग ने 7993 उम्मीदवारों को योग्य ठहराया है। साफ है कि राज्य की 288 विधानसभा सीटों के लिए 7993 उम्मीदवारों के बीच घमासान छिड़नेवाला है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन 7993 उम्मीदवारों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) ने सिर्फ 14 उम्मीदवार मैदान में उतारेहैं। इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या एमआईएम ने बीजेपी को हराने की मंशा के तहत MVA के लिए खुला मैदान छोड़ दिया है या फिर महाराष्ट्र के मुसलमान ओवैसी को घास नहीं डाल रहे हैं।
एमआईएम ने औरंगाबाद पूर्व से पूर्व सांसद सैयद इम्तियाज जलील, औरंगाबाद सेंट्रल से नासिर सिद्दीकी, धुले शहर से फारूक शाह अनवर, मालेगांव मध्य से मुफ्ती इस्माइल कासमी, भिवंडी पश्चिम से वारिस पठान, भायखला से फैयाज अहमद खान, मुंब्रा कलवा से सैफ पठान, वर्सोवा से रईस लश्करिया, सोलापुर से फारूक शबदी, मिराज (एससी) से महेश कांबले, मुर्तिजापुर (एससी) से सम्राट सुरवाड़े, कारंजा मनोरा से मोहम्मद यूसुफ, नांदेड दक्षिण से सैयद मोइन और कुर्ला (एससी) से बबीता कनाडे को चुनावी मैदान में उतारा है।
लगभग 8.9 करोड़ की आबादी वाले महाराष्ट्र में 11.54% यानी कि करीब 1.3 करोड़ मुसलमान रहते हैं। लेकिन, देश में खुद को अल्पसंख्यकों का नेता कहनेवाले ओवैसी ने राज्य में सिर्फ 14 उम्मीदवार उतार कर सभी को सकते में डाल दिया है। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद एमआईएम को विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी में शामिल कराने के लिए उसके पूर्व सांसद इम्तियाज जलील ने बहुत प्रयास किया लेकिन नाकाम रहे। ऐसे में अंतर्कलह से जूझ रही एमआईएम को लेकर लोगों में यह जानने की उत्सुकता है कि क्या राज्य के अल्पसंख्यकों पर ओवैसी का जादू काम नहीं कर रहा है या फिर ओवैसी को जीतने योग्य उम्मीदवार नहीं मिले?
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गौरतलब है कि इसी साल मई-जून में हुए लोकसभा चुनाव में एमआईएम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था। उसके सांसद इम्तियाज जलील 1.30 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हार गए थे। चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों में चली बीजेपी विरोध लहर और एमआईएम पर लगा बीजेपी की बी-पार्टी होने का टैग इसकी बड़ी वजह रही। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भी इसका कारण हैं। तब एमआईएम ने महाराष्ट्र में 44 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे सिर्फ दो सीटों मालेगांव और धुले पर ही जीत मिली थी। लेकिन महज 1.34 प्रतिशत वोट शेयर लेने के बाद भी एमआईएम ने कांग्रेस और राकांपा का कई सीटों पर काम बिगाड़ दिया था।ओ