
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बड़ा बयान (फोटो- सोशल मीडिया)
Dharmendra Pradhan Speech in Bhopal MP: भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में रविवार को एक ऐसा बयान सामने आया जिसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्यशाला में कहा कि मैं जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि मध्य प्रदेश के 50 लाख बच्चों ने 5वीं कक्षा तक सेब देखा ही नहीं होगा। अगर देखा भी होगा तो सिर्फ बाजार में, उन्हें इसे खाने का सौभाग्य नहीं मिला। मंत्री जी की यह बात सीधे दिल पर लगती है और समाज की उस कड़वी सच्चाई को बयां करती है जहां अनेक बच्चों को जरूरत के समय एक गिलास दूध तक नसीब नहीं होता।
इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, मंत्री राव उदय प्रताप सिंह और इंदर सिंह परमार की मौजूदगी में प्रधान ने एक नई पहल की बात की। उन्होंने कहा कि अक्सर स्वागत में दिए जाने वाले फूलों के गुलदस्ते की लाइफ महज 20 सेकंड होती है, जबकि इसकी कीमत औसतन 500 रुपये होती है। इतने पैसों में तो दो किलो सेब आ सकते हैं। उन्होंने गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां गुलदस्ते की जगह फलों की टोकरी देने की शुरुआत हुई है। असली जनआंदोलन नारे लगाना नहीं बल्कि ऐसे छोटे बदलाव लाना है जो समाज के लिए हितकारी हों।
कार्यक्रम में मौजूद विधायक रामेश्वर शर्मा और भगवानदास सबनानी की ओर देखते हुए मंत्री जी ने एक बेहद भावुक अपील की। उन्होंने कहा कि हमारे मित्र रामेश्वर जी बड़े-बड़े भंडारे करते हैं, लेकिन अगर वे अपनी विधानसभा में हफ्ते में एक बार किसी बच्चे को एक अंजीर, दो काजू और एक बेसन का लड्डू खिलाएं, तो शायद उस पोषण के असर से देश को कोई नया अब्दुल कलाम मिल सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने पोषण अभियान चलाया है और आंगनवाड़ी भी काम कर रही हैं, लेकिन यह सिर्फ सरकारी मिशन नहीं हो सकता। इसे पूरे समाज का दायित्व बनना होगा ताकि कुपोषण को हराया जा सके।
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धर्मेंद्र प्रधान ने शिक्षा के इतिहास पर भी गहरा प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मैकाले ने अंग्रेजी शासन को स्थाई बनाने के लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था को डिरेल किया था, लेकिन अब हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। उन्होंने मध्य प्रदेश को एक जीता-जागता लैबोरेटरी बताया जहां वैदिक काल से वैज्ञानिकता मौजूद है। मंत्री ने सुझाव दिया कि राज्य में एनसीईआरटी की किताबें पूरी तरह अपनाई जाएं। साथ ही, उन्होंने चिंता जताई कि ‘परख’ सर्वे में 40 प्रतिशत बच्चे अभी भी पीछे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हमें विकसित भारत का लक्ष्य पाना है, तो टेक्नोलॉजी और एआई की मदद लेकर बच्चों की नींव मजबूत करनी होगी।






