चंपई सोरेन और हेमंत सोरेन (सोर्स:-सोशल मीडिया)
रांची: झारखंड में होने वाली विधानसभा चुनाव को लेकर झारखंड की राजनीति गर्म है। झारखंड के पू्र्व मुख्यमंत्री और JMM के पूर्व नेता चंपई सोरेन ने आज बीजेपी में शामिल हुए, जिसके कारण एक खेमें तो खुशियों की लहर हौ तो दूसरे खेमे की नींद उड़ गई है। जी हां बीजेपी के खेमे में चंपई सोरेन के आने से झारखंड चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक और आदिवासी समूह की सहानुभूति के साथ जुड़ने की खुशी है तो दूसरी तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मुश्किलें बढ़ गई है।
झारखंड के पूर्व सीएम चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के संस्थापक सदस्य में एक है और झारखंड की राजनीति के जमे हुए खिलाड़ी है। यहीं कारण है कि उन्हें झारखंड टाइगर का नाम भी दिया गया है। हलांकि आंदोलनकारी विचारधारा के चंपई सोरेन ने JMM छोड़ने के बाद एक नई पार्टी बनाने का हिंट दिया था लेकिन अब वो बीजेपी में शामिल हो गए जिसके कारण JMM का चुनावी समीकरण बिगड़ता हुआ नजर आ रहा है।
चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की नींद उड़ गई है। इस बात को ऐसे समझिए कि झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी (JMM) के संस्थापक सदस्य रहे चंपई सोरेन के पास झारखंड की राजनीति का एक अच्छा खासा अनुभव होने के साथ-साथ JJP की रणनीति से भी पूर्ण रूप से वाकिफ है और चुनाव इतने नजदीक होने के बाद चंपई सोरेन का पार्टी छोड़ना हेमंत सोरेन के लिए चिंता का विषय बन गया।
झारखंड एक अलग राज्य के निर्माण से जुड़े आंदोलन के दौरान 1990 के दशक में अपनी भूमिका के लिए झारखंड टाइगर का उपनाम अर्जित कर चुके चंपई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त की। जहां उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया था इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने के लिए मजबूर हो गया। क्या लोकतंत्र में इससे अधिक अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? बैठक (तीन जुलाई को विधायक दल की बैठक) के दौरान, मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया।
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इसके साथ ही चंपई सोरेन ने कहा कि मैं हैरान रह गया। चूंकि मुझे सत्ता की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। हालांकि, मेरे स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंची।” चंपई ने साथ ही अपने पोस्ट में यह उल्लेख भी किया गया कि वह अपने आंसुओं को मुश्किल से रोक पा रहे हैं। लेकिन उन्हें (मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लिये बिना उनकी ओर इशारा करते हुए) सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिसके लिए हमने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास सोरेन ने 1991 में अविभाजित बिहार की सरायकेला सीट से उपचुनाव के जरिये निर्दलीय विधायक चुने जाने के साथ ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। चार साल बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के पंचू टुडू को हरा दिया। 2000 में विधानसभा चुनाव में उन्हें इसी सीट से भाजपा के अनंत राम टुडू ने हराया। वर्ष 2005 में भाजपा उम्मीदवार को केवल 880 मतों के अंतर से हराकर सीट फिर से जीत हासिल की और 2009, 2014 और 2019 के बाद के चुनावों में इसे बरकरार रखा।
उन्होंने सितंबर, 2010 से जनवरी, 2013 के बीच अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया, जब भाजपा ने झामुमो के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी। जब हेमंत सोरेन ने 2019 में राज्य में अपनी दूसरी सरकार बनाई, तो चंपई सोरेन खाद्य और नागरिक आपूर्ति और परिवहन मंत्री बने।
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जानकारी के लिए बता दें कि चंपई सोरेन का विवाह कम आयु में हो गया था और उनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी पांच सीट पर हार का सामना करना पड़ा, जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी राज्य की 28 आरक्षित सीट में से केवल दो ही जीत सकी।