
सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court Judgments in 2025: सुप्रीम कोर्ट ने इस साल (2025) कई मामलों में अपने पहले दिए गए अदालती फैसलों को बदला है। इनमें सबसे ताजा मामला अरावली विवाद से जुड़ा है, जिसमें सर्वोच्च अदालत ने महज 40 दिनों के भीतर ही अपना आदेश पलट दिया। आदेश पारित होने के एक महीने से थोड़ा अधिक समय में उसे रद्द कर दिया गया। यह तथ्य खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी नोट किया और अपने एक निर्णय में कहा कि इस तरह का रुझान अदालत की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।
जिन मामलों और मुद्दों में न्यायिक फैसले बदले गए, उनमें आवारा कुत्तों से जुड़ा मामला, राज्य विधानमंडल से भेजे गए विधेयकों पर सहमति देने में राज्यपाल की भूमिका, पटाखों पर प्रतिबंध, पिछली तारीख से पर्यावरण मंजूरी, भूषण स्टील लिमिटेड का दिवालियापन और अंत में अरावली से जुड़ा विवाद शामिल है।
जब परिस्थितियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता, तब भी कम समय में एक बेंच के फैसले को दूसरी बेंच द्वारा पलट देना यह संकेत देता है कि शुरुआती आदेश शायद सभी अहम पहलुओं पर गहराई से विचार किए बिना जल्दबाजी में दिए गए थे। यह स्थिति किसी मामले में सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण की बजाय जज-केंद्रित नजरिए को भी दर्शाती है।
भूषण स्टील केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत JSW स्टील द्वारा दिवालिया कंपनी भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था और कंपनी के परिसमापन का आदेश दिया था। इसके करीब तीन महीने बाद, 31 जुलाई को अदालत ने यह आदेश वापस ले लिया। फिर 26 सितंबर को एक नया फैसला सुनाया गया, जिसमें नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के उस आदेश को बरकरार रखा गया, जिसमें JSW स्टील के 19,700 करोड़ रुपये के रिजॉल्यूशन प्लान को मंजूरी दी गई थी।
आवारा कुत्तों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए 11 अगस्त को कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं और रेबीज से हो रही मौतों को देखते हुए उन्हें पकड़कर शेल्टर होम में रखने के निर्देश दिए थे। लेकिन यह मामला एक सप्ताह के भीतर दूसरी बेंच को सौंप दिया गया। नई बेंच ने 22 अगस्त को आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को स्टेरलाइज और वैक्सीनेट करने के बाद एनिमल बर्थ कंट्रोल नियमों के तहत उनके क्षेत्र में ही छोड़ा जाए और उन्हें शेल्टर होम में बंद न किया जाए।
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वनशक्ति याचिका में भी ऐसा ही देखने को मिला। 16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एनवायरनमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट के तहत एक्स पोस्ट फैक्टो यानी पिछली तारीख से दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को गैरकानूनी ठहराया था। हालांकि, नवंबर में तीन जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से उस आदेश को वापस ले लिया। पहले की बेंचों के आदेशों को पलटने वाली बेंचों पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 26 नवंबर को दिए गए एक फैसले में कहा कि वह इस बढ़ते चलन को दुख के साथ देख रहा है।






