
नाथूराम गोड़से व महात्मा गांधी (सोर्स-सोशल मीडिया)
Nathuram Godse assassinated Mahatma Gandhi: 30 जनवरी 1948 की शाम को दिल्ली के बिड़ला भवन में हमेशा की तरह प्रार्थना का समय तय था। शाम के 5 बजे थे। उस दिन सरदार पटेल गांधीजी से मिलने आए थे। दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत होती रही। और महात्मा को समय का पता ही नहीं चला। उन्हें प्रार्थना सभा में पहुंचने में थोड़ी देर हो गई। अपनी भतीजियों का हाथ थामे गांधीजी 5:15 बजे प्रार्थना सभा में पहुंचे। लोगों में हलचल मच गई, ‘बापू आ गए हैं’। तभी खाकी बुश जैकेट और नीली पैंट पहने एक व्यक्ति आया और बापू के पैर छूने लगा।
मनुबेन ने उस व्यक्ति से कहा, ‘बापू पहले ही 10 मिनट लेट हैं। उन्हें क्यों शर्मिंदा कर रहे हो’। यह व्यक्ति नाथूराम गोडसे था। मनुबेन अपनी किताब ‘लास्ट ग्लिम्प्सेस ऑफ़ गांधी’ में लिखती हैं। गोडसे ने उसे जोर से धक्का दिया। जिससे उसके हाथ में मौजूद सारा सामान जमीन पर गिर गया। जैसे ही मनुबेन सामान उठाने के लिए नीचे झुकीं, उन्हें पीछे से गोलियों की आवाज सुनाई दी। जब वह पलटी तो उसने देखा कि गांधी जमीन पर पड़े हुए हैं।
गांधी को अंदर ले जाया गया। लेकिन उस दिन वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। उनका बहुत खून बह चुका था। और कुछ ही मिनटों में उनकी मौत हो गई। बाहर नाथूराम हाथ ऊपर करके पुलिस-पुलिस चिल्ला रहा था। इस मामले के बारे में अलग-अलग स्रोत अलग-अलग कहानियां बताते हैं। 31 जनवरी, 1948 को न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर्बर्ट रेनर नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति ने नाथूराम को पकड़ लिया और उससे पिस्तौल छीन ली। घटनास्थल पर मौजूद कुछ लोगों ने बाद में बताया कि गोडसे ने भागने की कोशिश नहीं की और आत्मसमर्पण कर दिया।
गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास नाथूराम से मिलने आए। नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने अपनी किताब ‘गांधी मर्डर एंड आफ्टर’ में इस घटना का विवरण दिया है। देवदास नाथूराम के बारे में कुछ नहीं जानते थे। उन्हें लगा कि यह कोई पागल व्यक्ति होगा जो गांधी को गोली मार देगा। लेकिन जब वे जेल में गोडसे से मिले तो गोडसे ने उन्हें पहचान लिया और कहा, “मुझे लगता है कि तुम देवदास गांधी हो।” देवदास हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, तुम मुझे कैसे जानते हो? नाथूराम ने जवाब दिया कि वे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मिले थे। जहां देवदास ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के संपादक के तौर पर आए थे और नाथूराम ‘हिंदू राष्ट्र’ के संपादक के तौर पर।
अंतिम दर्शन के लिए रखा हुआ महात्मा गांधी का शव (सोर्स- सोशल मीडिया)
फिर वह सवाल आया जो किसी भी बेटे के मन में अपने पिता की हत्या को लेकर आता है। देवदास ने नाथूराम से पूछा, तुमने उन्हें क्यों मारा। इस पर नाथूराम ने जवाब दिया, “तुमने मेरे कारण अपने पिता को खो दिया है। तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जो दुख हुआ है, उसके लिए मुझे खेद है। लेकिन गांधीजी की हत्या के पीछे कोई व्यक्तिगत कारण नहीं था। यह कारण राजनीतिक था। अगर मुझे 35 मिनट का समय मिले तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैंने गांधीजी को क्यों मारा।”
उस दिन नाथूराम को यह समय नहीं दिया गया। लेकिन जब उसे मौत की सजा सुनाई गई, तो उसने अपने 6 घंटे के बयान में विस्तार से बताया कि गांधीजी की हत्या के पीछे क्या कारण था? यह 93 पन्नों का बयान था जो आज ही के दिन यानी 8 नवंबर 1949 को कोर्ट में पढ़ा गया था। नाथूराम ने अपने बयान में इसका जिक्र किया और तर्क दिया कि जब तक गांधी जिंदा हैं, वह भारत और हिंदुओं के खिलाफ काम करते रहेंगे। क्योंकि गांधी अनशन पर थे। उनकी मांग थी कि भारत में दंगे बंद होने चाहिए और भारत पाकिस्तान को उसका हिस्सा 50 करोड़ रुपए दे।
उन्होंने कहा कि जब गांधी ने मुसलमानों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा, तो मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि गांधी का अस्तित्व तुरंत समाप्त कर देना चाहिए। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगों को अधिकार दिलाने के लिए बहुत बड़ा काम किया था, लेकिन जब वे भारत आए, तो उनकी मानसिकता बदल गई। वे खुद को सही और गलत का फैसला करने वाला अंतिम न्यायाधीश मानने लगे। अगर देश को उनका नेतृत्व चाहिए, तो यह उनकी अजेयता को स्वीकार करने जैसा था। अगर देश ने उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं किया होता तो वे कांग्रेस से किनारा करना शुरू कर देते।
कोर्ट में नाथूराम गोड़से (सोर्स-सोशल मीडिया)
गोडसे की शिकायत थी कि गांधी खुद को सही और अपने विरोधियों को गलत मानते थे। लेकिन यह बात सभी लोगों पर लागू होती है। परिभाषा के अनुसार, आप खुद को सही और अपने विरोधी को गलत मानेंगे। इसलिए वह आपका विरोधी है। हर कोई यही मानता है कि उसने जो समझा है, वह सही है। यह भी स्वाभाविक है कि दूसरों को वह बात गलत लगे। लेकिन जब तक हिंसा का इस्तेमाल नहीं किया जाता, सभ्य समाज में विरोध दर्ज कराने का तरीका बंदूक से नहीं है। बंदूक से आप अपनी बात साबित नहीं कर सकते। हां, आप दूसरों को चुप करा सकते हैं।
गांधी की खासियत यह थी कि उन्होंने दुनिया के सामने अपने विचार व्यक्त करने का अहिंसक तरीका पेश किया। यह कमजोरों के हाथ में अचूक हथियार था। गांधी ने पाया कि अगर ताकतवर सुनने को तैयार न तो उसका मुकाबला कैसे किया जाए। गांधी के सत्याग्रह का इस्तेमाल आज पूरी दुनिया में होता है। लेकिन गोडसे का तर्क अलग था। उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं मान सकता कि आक्रमण का सशस्त्र प्रतिरोध कभी गलत या अन्यायपूर्ण हो सकता है। मैं प्रतिरोध करना तथा यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना धार्मिक तथा नैतिक कर्तव्य मानता हूँ।
गोड़से ने कहा कि (रामायण में) राम ने महायुद्ध में रावण को मारकर सीता को मुक्त कराया, (महाभारत में) कृष्ण ने कंस को मारकर उसकी क्रूरता का अंत किया तथा अर्जुन को अपने अनेक मित्रों और सम्बन्धियों से युद्ध करना पड़ा, जिनमें पूज्य भीष्म भी शामिल थे, क्योंकि वे आक्रमणकारियों का समर्थन कर रहे थे।” राम और कृष्ण का उदाहरण देने से पहले गोडसे यह भूल गया कि युद्ध से पहले राम ने रावण के पास अपना दूत भेजा था।
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श्री कृष्ण अंतिम क्षण तक युद्ध टालने का प्रयास करते रहे। यहाँ तक कि वे पांडवों से 5 गाँव भूमि लेने के लिए भी सहमत हो गए। गांधी किसके सिर पर पिस्तौल तान रहे थे? उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिए किसी बल का प्रयोग नहीं किया। वे अपने आदर्शों के लिए सत्याग्रह का मार्ग चुन रहे थे। गांधी की हत्या इस बात का प्रमाण है कि गांधी प्रभावशाली थे। उनकी हत्या केवल इसलिए की गई क्योंकि आप लोगों के बीच उनके प्रभाव का मुकाबला नहीं कर सकते थे।






