जाति जनगणना (सांकेतिक तस्वीर)
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार जाति जनगणना कराने जा रही है। यह जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट ब्रीफिंग के दौरान दी। देश में जनगणना शुरू होने के साथ ही इसके आंकड़े भी एकत्रित किए जाएंगे। जनगणना फॉर्म में ही जाति का एक कॉलम भी रखा जाएगा। विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार पर हमलावर था।
जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस पर हमला करते हुए केंद्र सरकार ने दावा किया कि दिवंगत प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 2010 में कहा था कि कैबिनेट में जाति जनगणना के मामले पर विचार किया जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने हमेशा इसका विरोध किया है। केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जाति जनगणना शुरू करने की घोषणा की है। आइए जानते हैं देश में जाति जनगणना का इतिहास क्या रहा है?
भारत में जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान 1881 में शुरू हुई थी। जिसमें सामाजिक-आर्थिक गणना भी होती थी। तब से देश की आबादी की व्यापक तस्वीर पेश करने के लिए हर दस साल में यह अभ्यास किया जाता है। जनगणना का उद्देश्य देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और जनसांख्यिकीय संरचना को समझना है। यह कार्य जनगणना अधिनियम 1948 के तहत किया जाता है, जिसके तहत एकत्र किए गए सभी डेटा गोपनीय होते हैं।
इसी पृष्ठभूमि में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की शुरुआत की गई थी। आखिरी बार सार्वजनकि तौर पर जाति आधारित जनगणना 1931 में की गई थी। 1941 में भी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना हुई आंकड़े न जारी करते हुए रोक दिया गया।
बात करें आधुनिक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना 2011 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान की गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा संचालित किया गया था। हालांकि, इस सर्वेक्षण के डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
आंकड़ों में जानें कितनी हैं जातियां
साल 1872 : क्षत्रिय, ब्राह्मण, राजपूत, पेशे के आधार पर अन्य जातियां, मूल ईसाई, आदिवासी जनजातियां, अर्ध-हिंदू जनजातियां।
साल 1901 : कुल1,642 जातियां
साल 1931 : कुल 4,147 जातियां
साल 1941 : द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनगणना नहीं हुई
साल 2011 : सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना संख्या को खामियों का हवाला देते हुए रोक दिया गया था। इसके आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किए गए।
साल 2021 : कोविड-19 महामारी के कारण जनगणना नहीं हो सकी
SECC का उद्देश्य देश के हर ग्रामीण और शहरी परिवार तक पहुँचना और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी जुटाना है। इस अभ्यास के माध्यम से सरकार को ज़रूरतमंद लोगों की पहचान करने और लाभकारी योजनाओं के लिए सहायता प्रदान करने में मदद मिलती है।