राष्ट्रपति भवन व सुप्रीम कोर्ट (डिजाइन फोटो)
नई दिल्ली: तमिलनाडु में राज्य सरकार बनाम राज्यपाल विवाद अब सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की शक्तियों तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधेयकों को पारित करने की समय सीमा तय करने के बाद देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान सामने आया है। उन्होंने देश की न्यायपालिका के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत को दी गई विशेष शक्तियां लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गई हैं। बता दें कि तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर कार्रवाई करनी होगी। इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों को लंबित रखने के मामले में समय सीमा तय कर दी है। इससे पहले विधेयकों को लंबित रखने की कोई समय सीमा नहीं थी।
आपको बता दें, अनुच्छेद 142 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या निर्णय देने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को एक अलग तरह की शक्ति देता है। कभी-कभी, जब कानून या कोई उपाय काम नहीं करता है, तो न्यायालय मामले के तथ्यों के अनुरूप तरीके से विवाद को निपटाने का बीड़ा उठा सकता है।
1998 में, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियाँ पूरक प्रकृति की हैं और इनका उपयोग किसी मौलिक कानून को बदलने या निरस्त करने और ऐसी जगह पर नई इमारत खड़ी करने के लिए नहीं किया जा सकता है जहाँ पहले कोई इमारत नहीं थी।
सबसे अहम सवाल यह है कि क्या अदालतें भारत के राष्ट्रपति को आदेश दे सकती हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट के पास इतनी शक्ति है कि वह राष्ट्रपति को निर्देश दे सके और उनके द्वारा लिए गए फैसलों की न्यायिक समीक्षा कर सके? आपको बता दें, भारत में राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग कार्य हैं।
भारत का राष्ट्रपति संघ का मुखिया होता है और कार्यकारी शक्तियां केवल राष्ट्रपति में ही निहित हो सकती हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भी होता है। राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का भी अधिकार होता है। हालांकि, यहां एक अहम बात यह है कि राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर ही जजों की नियुक्ति करता है।
साथ ही, राष्ट्रपति को जजों को उनके पद से हटाने का भी अधिकार होता है। इतना ही नहीं, अगर किसी मामले में कानूनी या तथ्यात्मक सवाल उठ रहे हैं, तो देश का राष्ट्रपति कोर्ट को मामले पर सलाह देने का निर्देश भी दे सकता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मौत की सजा के फैसले में केवल राष्ट्रपति ही माफी दे सकता है।
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इस तरह से देखा जाए तो भारत के राष्ट्रपति और कोर्ट का काम अलग-अलग है। संविधान के अनुसार देश का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद है। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय न्यायपालिका की सबसे बड़ी इकाई है। सर्वोच्च न्यायालय देश के राष्ट्रपति को सलाह दे सकता है, लेकिन राष्ट्रपति के लिए उसे मानना अनिवार्य नहीं है।