ई पलानीस्वामी और अमित शाह (फोटो सोर्स - सोशल मीडिया)
नई दिल्ली/चेन्नई: तमिलनाडु में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और एआईएडीएमके के संभावित गठबंधन को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं। हाल ही में एआईएडीएमके नेता ई पलानीस्वामी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के बाद अटकलें और तेज हो गई हैं। हालांकि, पलानीस्वामी ने गठबंधन को लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक हालात के आधार पर फैसले लिए जाएंगे। उधर, डीएमके और भाजपा के बीच ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर भी सियासी घमासान जारी है, जिससे तमिलनाडु की राजनीति और गरमा गई है।
तमिलनाडु में भाजपा और एआईएडीएमके का गठबंधन कोई नया नहीं है। 1998 में जयललिता के नेतृत्व में दोनों पार्टियों ने मिलकर 39 में से 30 सीटें जीती थीं। हालांकि, 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद यह गठबंधन टूट गया। 2004 के लोकसभा चुनावों में फिर से दोनों साथ आए, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। अब, आगामी चुनाव को देखते हुए, क्या यह गठबंधन दोबारा बनेगा या नहीं, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।
तमिलनाडु में भाजपा और डीएमके के बीच चल रहे सियासी टकराव के बीच एआईएडीएमके अपने अगले कदम को लेकर सतर्क है। पार्टी नेता ई पलानीस्वामी ने कहा कि गठबंधन पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है और इस पर चर्चा चुनाव के करीब होने पर होगी। उन्होंने कहा, “यह राजनीति है, परिस्थितियां बदलती रहती हैं। हम समान विचारधारा वाले दलों से बात करेंगे और सही समय पर निर्णय लेंगे।”
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डीएमके सरकार ने केंद्र की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूले का कड़ा विरोध किया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का कहना है कि भाजपा तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान होगा। वहीं, एआईएडीएमके का रुख दो-भाषा नीति के पक्ष में है, जो पार्टी के संस्थापकों अन्नादुरई, एमजीआर और जयललिता के समय से चला आ रहा है। तमिलनाडु की राजनीति में यह मुद्दा लगातार तूल पकड़ रहा है और आने वाले चुनाव में यह बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। अब देखना होगा कि भाजपा और एआईएडीएमके मिलकर डीएमके को टक्कर देते हैं या नहीं।