सिद्धारमैया और सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्लीः प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एक्शन पर विपक्षी नेता अक्सर सवाल उठाते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को फटकार लगाते हुए तीखी टिप्पणी की है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई की बेंच ने कहा कि राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में लड़ी जानी चाहिए। जांच एजेंसियों के जरिए नहीं। इस तरह से ईडी का इस्तेमाल क्यों हो रहा है।
यह केस कांग्रेस नेता व कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी बीएम पार्वती से जुड़ा है। ईडी ने सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड (MUDA) केस में समन भेजा था। ईडी के इस समन को कर्नाटक हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया तो ईडी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।
MUDA केस की सुनवाई चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच कर रही थी। इस दौरान सीजेआई गवई ने कहा कि हमारा मुंह मत खुलवाइए। नहीं तो हम ईडी के बारे में तीखी टिप्पणियां करने को मजबूर हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। आप देश भर में इस हिंसा को मत फैलाइए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईडी का समन खारिज कर दिया।
वर्ष 1992 में अर्बन डेवलपमेंट संस्थान मैसूर या अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) ने रिहायशी इलाके विकसित करने के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की थी। इसके बदले में MUDA की इंसेंटिव 50:50 स्कीम के तहत जमीन मालिकों को विकसित भूमि में 50% साइट या एक वैकल्पिक साइट दी गई।
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आरोप है कि सिद्धारमैया की पत्नी को जो जमीन मुआवजे के रूप में MUDA विजय नगर में दी, उसकी कीमत कसारे गांव की जमीन से बहुत ज्यादा है। स्नेहमयी कृष्णा नामक व्यक्ति ने सिद्धारमैया के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। स्नेहमयी का आरोप है कि सिद्धारमैया 1998 से लेकर 2023 तक डिप्टी सीएम या सीएम जैसे प्रभावशाली पदों पर रहे। उन्होंने अपने पावर का इस्तेमाल कर दस्तावेजों में हेरफेर कर MUDA की साइट्स को अपनी पारिवारिक संपत्ति का दावा किया। शिकायत में कहा गया कि सिद्धारमैया इस घोटाले से भले ही सीधे नहीं जुड़े हैं, लेकिन उन्होंने अपनी पावर का इस्तेमाल कर अपने परिवार जनों को फायदा पहुंचाया है।