सुप्रीम कोर्ट (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Delhi Pollution News: सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण के लिए केवल पराली और किसानों को दोषी ठहराने पर नाराज़गी जताई। अदालत ने कहा कि कोविड के दौरान लगे लॉकडाउन में भी पराली जलाई गई थी, लेकिन उस समय लोगों ने साफ नीला आसमान देखा, ऐसा क्यों हुआ? इस पर विचार करने की जरूरत है, क्योंकि कई अन्य कारण भी प्रदूषण बढ़ाते हैं। कोर्ट ने कहा कि हम पराली जलाने को लेकर टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन किसानों पर बोझ डालना गलत है जिनका इस अदालत में मुश्किल से कोई प्रतिनिधित्व है।
कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण के लिए शॉर्ट और लॉन्ग टर्म समाधान तलाशने के उद्देश्य से इस मामले को महीने में दो बार सुना जाएगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि देश का कोई भी शहर इतनी बड़ी आबादी को समायोजित करने या यह सोचकर विकसित नहीं किया गया कि हर परिवार के पास कई गाड़ियाँ होंगी। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को रखी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली में लगातार बने रहने वाले वायु प्रदूषण के लिए किसानों को अलग-थलग करके दोष देने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया। अदालत ने कहा कि कोविड लॉकडाउन के समय भी पराली जलाई गई, लेकिन उस दौरान राजधानी का आसमान एकदम साफ था। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे को एक रूटीन केस की तरह नहीं निपटाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पराली जलाने को लेकर चल रहा नैरेटिव “राजनीतिक मसला या अहंकार का विषय” नहीं बनना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि दिल्ली की जहरीली हवा के कई स्रोत हैं। सीजेआई ने केंद्र सरकार से पूछा कि कमिशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (CAQM), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और अन्य एजेंसियों ने तात्कालिक और दीर्घकालिक स्तर पर कौन-कौन से कदम उठाए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।
चीफ जस्टिस ने कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर पराली जलाने के अलावा अन्य प्रदूषण कारकों को रोकने के लिए उठाए गए “प्रभावी कदमों” पर विस्तृत रिपोर्ट चाहते हैं। उन्होंने पूछा कि अगर कार्ययोजना तैयार है तो उसकी समीक्षा क्यों नहीं की जा रही? क्या आप कोई सकारात्मक असर दिखा पाए हैं? पीठ ने कहा कि शहरों का विकास लोगों की जीवन-गुणवत्ता को खराब नहीं करना चाहिए।
केंद्र सरकार की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि पंजाब, हरियाणा और सीपीसीबी सहित सभी संस्थाओं की कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का लक्ष्य ‘जीरो स्टबल बर्निंग’ था, लेकिन यह पूरी तरह हासिल नहीं हुआ। साथ ही बताया कि पराली जलाना एक मौसमी कारक है। जस्टिस बागची ने कहा कि निर्माण कार्य भी एक बड़ा कारण है और पूछा कि कंस्ट्रक्शन पर लगे प्रतिबंध को जमीन पर कितनी प्रभावी तरह लागू किया गया।
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अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि सरकार के हलफनामे में गाड़ियों, निर्माण गतिविधियों, धूल और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का श्रेणीवार डेटा शामिल है। उन्होंने IIT की 2016 और 2023 की स्टडी का हवाला देते हुए कहा कि वाहन प्रदूषण और औद्योगिक धूल अभी भी प्रमुख कारक हैं। पीठ ने CAQM के सदस्यों की विशेषज्ञता और बैकग्राउंड का विवरण भी मांगा है।