सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
Supreme Court News: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भ्रष्टाचार विरोधी कानून का वह प्रावधान, जो भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए पूर्वानुमति अनिवार्य बनाता है, विधायिका द्वारा भयमुक्त शासन स्थापित करने का एक प्रयास है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया, यह प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि ईमानदार अधिकारियों को सजा न मिले और बेईमान अधिकारी बच न सकें।
भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी अधिकारियों पर जांच से पहले अनुमति की शर्त को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने साफ किया कि यह प्रावधान ईमानदार अधिकारियों को बेवजह प्रताड़ना से बचाने के लिए है, न कि दोषियों को बचाने के लिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बेवजह की जांचें सुशासन को बाधित करती हैं। अब जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि जांच से पहले अनुमति की प्रक्रिया लोकतांत्रिक और जिम्मेदार प्रशासन का हिस्सा है। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि 2018 में धारा 17ए लागू होने के बाद से CBI को 2,395 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 1,406 पर जांच की अनुमति दी गई, जबकि 989 को ठुकरा दिया गया। केंद्र ने यह भी कहा कि किसी भी अस्वीकृति आदेश को न्यायिक समीक्षा के लिए चुनौती दी जा सकती है।
केंद्र सरकार ने कहा कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कार्रवाई जरूरी है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि ईमानदार अधिकारियों को बिना वजह के उत्पीड़न का शिकार न बनाया जाए। केंद्र का पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि मौजूदा दौर में आरटीआई और शिकायतों के जरिये अधिकारियों को निशाना बनाया जाता है। ऐसे में पूर्वानुमति की व्यवस्था अफसरों को आश्वस्त करती है कि वे बिना डर के फैसले ले सकते हैं।
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सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्र से पूछा कि 2018 के बाद से कितनी शिकायतें मिलीं और किन पर अनुमति दी गई। इस पर मेहता ने आंकड़े देते हुए कहा कि अधिकांश मामलों में जांच की मंजूरी दी गई। याचिकाकर्ता संगठन ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि यह धारा भ्रष्टाचार की जांच की प्रक्रिया को धीमा करती है और पारदर्शिता के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।