सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और राज्यों को सख्त संदेश (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विशेष कानूनों के तहत दर्ज गंभीर मामलों की धीमी सुनवाई पर चिंता जताते हुए केंद्र और राज्यों को दो टूक कहा है कि त्वरित न्याय के लिए विशेष अदालतों की स्थापना अब जरूरी हो गई है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब विशेष कानूनों को लागू किया जाता है तो उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए न्यायिक ढांचे को भी मजबूत करना जरूरी है। कोर्ट ने पूछा कि जब मामलों का भार बढ़ रहा है, तो सरकारें अब तक न्यायिक असर का मूल्यांकन क्यों नहीं कर रही हैं। इससे न केवल न्याय प्रक्रिया लंबी होती है, बल्कि कानून के मकसद पर भी असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक नक्सल समर्थक की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राज्य में हुए एक विस्फोट के बाद उस पर मामला दर्ज किया गया था जिसमें त्वरित प्रतिक्रिया दल के 15 पुलिसकर्मी मारे गए थे। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) राजकुमार भास्कर ठाकरे ने NIA द्वारा दायर हलफनामे का हवाला दिया। पीठ ने 9 मई के अपने आदेश में कहा, हमारा मानना है कि जब विशेष कानूनों के तहत मुकदमे चलाए जाने हैं, तो केंद्र या राज्यों के लिए कानून के विधायी उद्देश्य को प्राप्त करने व त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे के साथ विशेष अदालतें स्थापित करें।
न्यायिक ढांचा मजबूत किए बिना विशेष कानून बेअसर
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आप विशेष कानूनों के तहत मुकदमे चलाना चाहते हैं, तो उसके लिए विशेष अदालतें और पर्याप्त जजों की नियुक्ति अनिवार्य है। अदालत ने यह बात महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हुए नक्सली हमले से जुड़े एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। कोर्ट ने सवाल उठाया कि सरकार ऐसे संवेदनशील मामलों के लिए विशेष अदालतें क्यों नहीं स्थापित कर रही है, जबकि ये केस गंभीर सामाजिक और राष्ट्रीय प्रभाव छोड़ सकते हैं।
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केंद्र और महाराष्ट्र से दो हफ्ते में जवाब तलब
शीर्ष अदालत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि वे यह आकलन क्यों नहीं करते कि किसी विशेष कानून के लागू होने के बाद न्यायिक प्रणाली पर उसका क्या असर हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा जजों पर अतिरिक्त बोझ डालने से मुकदमों की त्वरित सुनवाई संभव नहीं है। न्यायिक व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए नई अदालतें और पर्याप्त जज होने चाहिए, ताकि विशेष कानून अपने उद्देश्य में सफल हो सकें।