मिडिल ईस्ट संघर्ष पर सोनिया गांधी का मोदी सरकार पर हमला (फोटो- सोशल मीडिया)
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने मिडिल ईस्ट में जारी युद्ध पर भारत सरकार की चुप्पी को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे भारत की नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से गंभीर विचलन बताया है। सोनिया ने अखबार में एक लेख लिखते हुए कहा कि गाजा पर हो रही तबाही और ईरान पर इजरायल के हमलों पर भारत की चुप्पी चिंताजनक है। उन्होंने सरकार से अपील की कि भारत को दो टूक बोलते हुए क्षेत्र में शांति की वकालत करनी चाहिए।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने भारत की पारंपरिक फिलिस्तीन नीति से पीछे हटते हुए अपने मूल्यों और आवाज को खो दिया है। उन्होंने 13 जून को ईरान पर इजरायल द्वारा किए गए हमले को “अवैध और असंवैधानिक” बताया और कहा कि यह पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से इन बमबारी और लक्षित हत्याओं की निंदा भी की।
ईरान भारत का पुराना मित्र, समर्थन याद रखे सरकार
सोनिया गांधी ने याद दिलाया कि ईरान न सिर्फ भारत का पुराना मित्र रहा है, बल्कि 1994 में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र में भारत विरोधी प्रस्ताव को रोकने में ईरान ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि भारत और ईरान के बीच सभ्यतागत रिश्ते रहे हैं और ऐसे वक्त में भारत की चुप्पी उसकी वैश्विक छवि को प्रभावित कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी देर नहीं हुई है। भारत को तुरंत कूटनीतिक माध्यमों का उपयोग कर बातचीत की पहल करनी चाहिए और क्षेत्र में बढ़ते तनाव को कम करने में भूमिका निभानी चाहिए। सोनिया गांधी ने भारत की भूमिका को “विश्व मंच पर शांतिदूत” के रूप में पुनर्स्थापित करने की जरूरत पर बल दिया।
नेतन्याहू और ट्रंप पर भी साधा निशाना
सोनिया गांधी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आलोचना करते हुए कहा कि उनका नेतृत्व शांति को कमजोर और उग्रवाद को बढ़ावा देता है। उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 17 जून के बयान को भी “निराशाजनक” बताया, जिसमें ट्रंप ने अपनी ही खुफिया एजेंसियों को दरकिनार करते हुए ईरान को परमाणु हथियारों के करीब बताया था।
लेख के अंत में सोनिया गांधी ने दोहराया कि भारत को अपनी पारंपरिक भूमिका में लौटते हुए, साहस और स्पष्टता के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह वक्त चुप रहने का नहीं, बल्कि आगे आकर संवाद और समाधान को बढ़ावा देने का है।