कांग्रेस नेता राहुल गांधी व भाजपा नेता निशिकांत दुबे (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: देश की राजनीति में इन दिनों भाषा को लेकर गहराता विवाद सुर्खियों में है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जहां अंग्रेजी को गरीबों के लिए “अवसर का पुल” बताया, वहीं भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इसे “गुलामी की मानसिकता” करार देते हुए तीखा पलटवार किया। इस बहस ने न सिर्फ शिक्षा नीति पर बहस छेड़ दी है, बल्कि भाषा की भूमिका और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक अहमियत को भी नए सिरे से चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि अंग्रेजी गरीब और हाशिए पर खड़े वर्गों के लिए समानता की कुंजी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस नहीं चाहते कि गरीब बच्चे अंग्रेजी सीखें, ताकि वे सवाल न कर सकें और बराबरी न कर सकें। इस पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि आखिर राहुल गांधी गुलामी की भाषा पर गर्व क्यों करते हैं, जबकि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देते हैं।
राहुल गांधी जी @RahulGandhi आपका खोजी सलाहकार आपको बर्बाद करने पर उतारू है,यह आपके पिताजी के द्वारा देश को दिया शिक्षा नीति 1986 का है,इसमें आपके पिताजी हिंदी को बढ़ावा देने,संस्कृत भाषा को सिखाने तथा क्षेत्रीय भाषाओं में अंग्रेज़ी से अनुवाद करने का वादा देश से कर रहे हैं ।यही… https://t.co/jqSVxr5dG7 pic.twitter.com/nAy3OFwRaa
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) June 22, 2025
‘गुलामी की भाषा’ या अवसर का माध्यम?
निशिकांत दुबे ने कहा कि राहुल गांधी का अंग्रेजी प्रेम नई बात नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उनके पिता राजीव गांधी ने भी अंग्रेजी को माध्यम के रूप में रखा था, लेकिन साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और संस्कृत के प्रचार की भी बात की थी। दुबे ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की 2020 की नई शिक्षा नीति भी इन्हीं विचारों पर आधारित है, जो मातृभाषा को सशक्त करने पर बल देती है।
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शिक्षा नीति के बहाने संस्कृति की बात
राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि भारत की हर भाषा में संस्कृति और आत्मा बसती है, लेकिन आज की दुनिया में अंग्रेजी आत्मविश्वास और रोजगार का द्वार है। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में कहा था कि भारत की भाषाएं हमारी संस्कृति की शोभा हैं, और धर्म या इतिहास को समझने के लिए विदेशी भाषा की जरूरत नहीं होनी चाहिए। उनके इस बयान पर भी दक्षिण भारतीय नेताओं ने विरोध जताया था।