प्रचीन पांडुलिपी (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्लीः संसद की एक समिति ने ऐसी उन्नत ज्ञान ढांचा विकसित करने की सिफारिश की है, जिसमें पांडुलिपि छवियों को खोज योग्य पाठ में परिवर्तित करने और प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनंतिम अनुवाद प्रदान करने के लिए एक एआई-सहायता प्राप्त मंच बनाना शामिल हो। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया है कि संस्कृति मंत्रालय ‘‘जमीन पर काम करने वाले कर्मियों को पंडुलिपि मित्र के रूप में सशक्त बनाने के लिए एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम” शुरू कर सकता है।
समिति ने पिछले सप्ताह संसद में प्रस्तुत ‘संस्कृति मंत्रालय की अनुदान मांगों (2025-26)’ पर अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘इन प्रशिक्षित व्यक्तियों को स्थानीय स्तर पर पांडुलिपियों के दस्तावेजीकरण, संरक्षण और डिजिटलीकरण में सहायता करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान से सशक्त किया जाएगा।”
मौजूदा डिजिटलीकरण प्रयासों के आधार पर, समिति ने पांडुलिपियों के संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए एक व्यापक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के विकास की सिफारिश की है। उसने एक उन्नत डिजिटल मंच को शामिल करने का सुझाव दिया है, जिसमें कई लिपियों और भाषाओं में पांडुलिपियों में एआई-संवर्धित खोज क्षमताएं और सत्यापित शोधकर्ताओं को पांडुलिपि लेखन और अनुवाद में योगदान करने वाले टूल शामिल होने चाहिए।
संसदीय समिति ने यह भी उल्लेख किया कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) ने पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण में प्रगति की है। वहीं वर्तमान दृष्टिकोण वास्तव में संवादात्मक, शोध-सक्षम डिजिटल अवसंरचना बनाने के बजाय बुनियादी दस्तावेजीकरण पर केंद्रित है। समिति ने रिपोर्ट में कहा, ‘‘यह सिफारिश एक अधिक परिष्कृत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का प्रस्ताव करके उस अंतर पर ध्यान केंद्रित करती है जो शोधकर्ताओं और जनता के पांडुलिपि सामग्री के साथ तालमेल बैठाने के तरीके को बदल देगी।
देश की अन्य खबरों को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (National Mission for Manuscripts (NAMAMI)) की स्थापना भारत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय ने सन 2003 के फरवरी माह में की। इस परियोजना की अवधि पांच वर्ष रखी गयी है।
इसका उद्देश्य भारत की विशाल पाण्डुलिपि सम्पदा को खोजना एवं उसको संरक्षित करना है। ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग ५० लाख पांडुलिपियां हैं जो सम्भवतः विश्व में सबसे बड़ी पांडुलिपियों की संख्या है। सब मिलाकर ये पांडुलिपियां ही भारत के इतिहास, एवं चिन्तन की स्मृति हैं।