सुषमा स्वाराज (फोटो- सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्कः 1998 का वर्ष था केंद्र और दिल्ली में भाजपा की सरकार थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना खींचतान थी। राजधानी में विधानसभा चुनाव मुहाने पर दस्तक दे रहा था। आपसी खींचतान से भाजपा परेशान था। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने शीला दीक्षित को सीएम फेस घोषित कर दिया। अब इनके जवाब में भाजपा को मुख्यमंत्री का नया महिला चेहरा चाहिए था। दिल्ली की सियासत में एंट्री होती सुषमा स्वाराज की। अटल और आडवाणी सुषमा स्वाराज को दिल्ली में सीएम फेस बनाना चाहते थे। लेकिन सुषमा स्वाराज को हार का डर था तो उन्होंने शर्त रखी की यदि भाजपा दिल्ली में हारती है तो मैं इस्तीफा देकर केंद्र में वापिस आ जाउंगी। इस पर भाजपा आलाकमान सहमत हो गए।
इसके बाद दिल्ली में चुनाव हुआ भाजपा जीत गई, सुषमा स्वाराज मुख्यमंत्री बनी, लेकिन उनकी सरकार मात्र 52 दिन तक चली। इसके बाद भाजपा की दिल्ली में वापसी नहीं हुई। वहीं गजब का इत्तेफाक है कि दिल्ली में भाजपा 27 साल बाद वापिस आ गई है। हालांकि मुख्यमंत्री अभी तय नहीं हुआ है। दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में एक दावेदार के रूप में सुषमा की बेटी बांसुरी को भी देखा जा रहा है। इसी बीच आज 14 फरवरी को दिल्ली की पूर्व सीएम सुषमा स्वाराज की जयंती आ गई है।
हरियाणा के अंबाला में हुआ जन्म
सुषमा स्वाराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला छावनी में हुआ था। श्री हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने अंबाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीति विज्ञान में स्नातक किया और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से विधि की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान, वे एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और राज्य की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता रहीं। 1973 में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। यही दौर था जब सुषमा स्वाराज दिल्ली आईं।
जेपी आंदोलन से राजनीतिक में एंट्री
सुषमा स्वराज ने 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के साथ राजनीति में कदम रखा। 1977 में मात्र 25 वर्ष की आयु में वे हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं, जो उस समय की सबसे कम उम्र की मंत्री थीं। 1998 में उन्होंने दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री का पद संभाला। इसके अतिरिक्त, वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, और संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों की मंत्री रहीं। 2009 में, वे लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं और 2014 में भारत की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त हुईं।
संसद में प्रभावशाली भाषण
सुषमा स्वराज अपने प्रभावशाली और धाराप्रवाह भाषणों के लिए प्रसिद्ध थीं। संसद में उनके वक्तृत्व कौशल ने न केवल उनके समर्थकों को, बल्कि विपक्षी नेताओं को भी प्रभावित किया। उनके भाषणों में तार्किकता, स्पष्टता और भावनात्मक अपील का मिश्रण होता था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। संसद में सुषमा स्वाराज और मनमोहन सिंह के बीच सायराना अंदाज में वार पलटवार का वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर जमकर पसंद किया जाता है। यह उनके भाषणों एवं व्यक्तित्व की एक बानगी है।
राजनीतिक संबंधों के चलते विवादों में फंस गईं थी स्वाराज
सुषमा स्वराज के पति, स्वराज कौशल, एक वरिष्ठ अधिवक्ता और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल रहे हैं। उनकी बेटी, बांसुरी स्वराज, भी एक वकील हैं। 2015 में, सुषमा स्वराज पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने पति और बेटी के ललित मोदी के साथ संबंधों के कारण ललित मोदी को ब्रिटेन में वीजा दिलाने में मदद की। इस विवाद ने राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा बटोरी, हालांकि सुषमा स्वराज ने इन आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि ‘मैंने केवल मानवीय आधार पर मदद की। अगर ये अपराध है तो मैं अपराधी हूं। सदन जो चाहे सजा दे, मैं तैयार हूं।’
2019 में हो गया था निधन
एक महान सख्सियत को भारत ने 6 अगस्त 2019 को खो दिया। 67 वर्ष की आयु में सुषमा स्वराज का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके असामयिक निधन से देश ने एक समर्पित और प्रभावशाली नेता को खो दिया।
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