कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत व सीएम सिद्धारमैया
बेंगलूरु: कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को लेकर बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने अपनी मंजूरी देने की बजाय इस विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए सुरक्षित रख लिया है। राजभवन सूत्रों के अनुसार, अब यह विधेयक कर्नाटक के विधि एवं संसदीय कार्य विभाग के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है।
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख लिया है। राजभवन सूत्रों ने बुधवार को बताया कि राज्यपाल गहलोत ने विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख लिया है और इसे कर्नाटक के विधि एवं संसदीय कार्य विभाग को भेज दिया है। अब राज्य सरकार इस विधेयक की मंजूरी को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजेगी।
कर्नाटक विधानमंडल के दोनों सदनों से विधेयक पारित
बता दें कि राज्य में भाजपा के विरोध के बावजूद कर्नाटक विधानमंडल के दोनों सदनों ने विधेयक पारित कर दिया था। वहीं, भाजपा ने आरोप लगाया कि यह विधेयक अवैध है मामला ऐसा है कि भारत के संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही आरोप लगाया कि इस विधेयक में सत्तारूढ़ कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति की क्षिपी हुई इच्छा है। पार्टी ने पूरे प्रदेश में चल रही अपनी जन आक्रोश यात्रा के दौरान इस विधेयक को बड़ा मुद्दा बनाया है।
राज्यपाल ने क्या कहा
राज्यपाल गहलोत ने कहा कि भारतीय संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता, क्योंकि यह समानता (अनुच्छेद 14), गैर-भेदभाव (अनुच्छेद 15) और समान अवसर (अनुच्छेद 16) जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि आरक्षण केवल सामाजिक और शिक्षा में किसी तरह के पिछड़ेपन पर दिया जा सकता है, धर्म के आधार पर नहीं। उन्होंने अनुच्छेद 15 का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि संविधान धर्म, जाति, लिंग, नस्ल या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता।
संवैधानिक अधिकार और राज्यपाल का फैसला
राज्यपाल ने स्पष्टतौर से कहा कि अनुच्छेद 200 और 201 के तहत उन्हें किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित करने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है कि वह तय करें कि किसी विधेयक को तत्काल पारित किया जाए या राष्ट्रपति के पास भेजा जाए। उन्होंने कहा, कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है जब राज्यपाल उसे मंजूरी देते हैं या राष्ट्रपति से मंजूरी मिलती है। अगर भविष्य में कोई भ्रम या विवाद की संभावना है तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
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क्या है ये विधेयक
यह विधेयक ‘कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (संशोधन) विधेयक, 2025’ है, जिसे कांग्रेस सरकार ने 21 मार्च को विधानमंडल के दोनों सदनों में पारित किया था। इसका उद्देश्य सरकारी ठेकों में मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करना था।