कारगिल युद्ध, इंद्र कुमार गुजराल (फोटो- सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्कः कारगिल युद्ध की विजय गाथा का जब-जब जिक्र होगा, उसमें भारत के 13वें प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल का जिक्र अवश्य होगा। क्योंकि उनकी शांति की कोशिशों ने ही भारत को युद्ध में झोंक दिया था। गुजराल का जन्म पाकिस्तान के पंजाब में हुआ था। बंटवारे के बाद उनके माता-पिता भारत आ गए। आगे चलकर वह भारत के प्रधानमंत्री बने। उन्हीं के कार्यकाल में कारगिल का खेल होने की पाकिस्तानी योजना बनने लगी थी। कारगिल युद्ध को उनकी गलत नीतियों की देन बताया गया, जिसे ‘गुजराल सिद्धांत’ कहकर संबोधित गया। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाक में एक बार फिर तनाव तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में सरहद-सेना और सियासत के दूसरे एपिसोड जानिए पूर्व पीएम गुजराल की वो गलती, जिसके कारण हुआ कारगिल युद्ध।
भारत पाकिस्तान के बीच चौथा युद्ध कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है। जुलाई 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ किया था। इसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर पाकिस्तानी घुसपैठ को नाकाम किया। इस युद्ध में भारतीय वायु सेना और थल सेना ने मिलकर पाकिस्तानी सेना को खदेड़ा और घुसपैठ वाले इलाकों को मुक्त करवाया। उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।
पाकिस्तान से वापस बुला लिए थे RAW एजेंट
भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर अपनी छाप छोड़ने के मकसद से इंद्र कुमार गुजराल ने ‘गुजराल सिद्धांत’ नीति का उपयोग किया। इसी नीति के तहत पाकिस्तान में काम कर रही भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के ऑपरेशन बंद करवा दिए थे। इसके खामियाजे का भुगतान भारत को कारगिल युद्ध के रूप में करना पड़ा। क्योंकि पाकिस्तान से किसी प्रकार का इंटेलीजेंस इनपुट मिलना बंद हो गया, जो सुरक्षा की दृष्टि से एक बड़ा फेलियर साबित हुआ। इसका फायदा ISI ने उठाया।
कहते हैं कि पूर्व पीएम गुजराल का मानना था कि भारत को अपनी क्षमता के अनुरूप वैश्विक शक्ति बनने के लिए दो दुश्मन पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने होंगे। यह सिद्धांत पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के कार्यकाल में तैयार किया गया था। उस समय गुजराल विदेश मंत्री थे। हालांकि इसको पड़ोसी देश पर लागू तब किया गया, जब गुजराल प्रधानमंत्री बने।
राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से बड़ी चूक
इसका एक फायदा यह भी हुआ कि जब लाहौर में धमाके हुए तो पाकिस्तान इसका आरोप भारत पर नहीं मढ़ सका, लेकिन इसके बाद भारत की खुफिया एजेंसी पाकिस्तान में किसी तरह का स्पेशल ऑपरेशन नहीं चला पाई और न ही हमें पाकिस्तान की खुफिया जानकारियां मिल सकीं। सुरक्षा के कई जानकार कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से इस फैसले को बड़ी चूक मानते हैं।
सिद्धांत के बचाव में गुजराल की सफाई
राजनीति से दूर होने के लंबे समय बाद गुजराल अपने ‘गुजराल सिद्धांत’ का बचाव करते हुए अपनी किताब ‘मैटर्स ऑफ डिस्क्रेशन’ में लिखा कि भारत को अगर पाकिस्तान और चीन जैसे दो दुश्मन देशों से निपटना है, तो बाकी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे और शांतिपूर्ण रिश्ते जरूरी हैं। यही इस सिद्धांत का मूल विचार था।
गुजराल की वजह से भारत को मिला रूस जैसा दोस्त
गुजराल 1960 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री बने थे, लेकिन आपातकाल के समय उनका संजय गांधी से विवाद हो गया, जिसके बाद उनसे सूचना प्रसारण मंत्रालय छीन लिया गया और योजना मंत्रालय भेज दिया गया। उनकी जगह एक सख्त नेता विद्या चरण शुक्ल को लाया गया। हालांकि यह विवाद उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ, क्योंकि बाद में उन्हें सोवियत रूस भेजा गया, गुजराल ने ही भारत और रूस के संबंधों को मजबूत बनाया। उन्हीं की वजह से एक रूस के रूप में भारत को एक सच्चा दोस्त मिला।