1947 में जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना, पंडित नेहरू(फोटो-सोशल मीडिया
नवभारत डिजिटल डेस्क: भारत आजाद हो चुका था। जिन्ना को पाकिस्तान के रूप में अलग देश मिल चुका था, लेकिन कश्मीर आजाद रियासत थी। टीबी-लंग्स की बीमारी परेशान मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर में सुकून के कुछ दिन बीताना चाहते थे। इस बहाने कुछ सियासी खिचड़ी भी पकती। जिन्ना को लगता था कि 75 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले कश्मीर का विलय पाकिस्तान में ही होगा। 24 अगस्त 1947 को जिन्ना ने अपने मिलिट्री सेक्रेटरी कर्नल विलियम बर्नी को कश्मीर इंतजामात के लिए भेजा। लेकिन कर्नल मायूसी हाथ लगी। यहीं से जिन्ना की बेताबी कश्मीर के लिए बढ़ गई, फिर भारत-पाक का पहला युद्ध कश्मीर का हुआ। एक बार फिर पहलगाम हमले के बाद दोनों देशों में तनाव है। ऐसे में सरहद-सेना और सियासत के पहले एपिसोड में हम बताएंगे कैसे बना पीओके।
लैरी कॉलिंस और डोमिनिक लैपियर की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुताबिक, 5 दिन बाद लौटे कर्नल बर्नी ने बताया कि राजा हरि सिंह नहीं चाहते कि आप कश्मीर की धरती पर कदम रखें। पर्यटक के तौर पर भी नहीं। जैसा आप सोचते हैं, कश्मीर की स्थिति उसके बिल्कुल उलट है। शायद यहीं से एक युद्ध की नींव पड़ चुकी थी।
कश्मीर के विलय को लेकर भारत ने कभी ज्यादा कोशिश नहीं की। इसके पीछे गृह व रक्षामंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का मानना था कि भारत के पास पहले से ही बहुत राज्य हैं। हालांकि जून 1947 में भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन कश्मीर गए, लेकिन महाराज हरि सिंह ने बहाना बनाकर मुलाकात नहीं की। इसके कुछ समय बाद माउंटबेटन के चीफ ऑफ स्टाफ लॉर्ड हेस्टिंग्स कश्मीर गए। उनके मुताबिक जब उन्होंने भारत में कश्मीर के विलय की बात की तो महाराज ने विषय बदल दिया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल और महाराज हरि सिंह (फोटो- सोशल मीडिया)
हरि सिंह को नहीं पसंद था लोकतंत्र
पाकिस्तान का मुस्लिम देश बनना और भारत का लोकतंत्रिक बनना महाराज हरि सिंह को पसंद भी नहीं आ रहा था। इसके बाद भारत की दिलचस्पी कश्मीर में कम हो गई। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की बेताबी बढ़ती जा रही थी। 24 अगस्त 1947 को पाकिस्तान सरकार ने महाराजा हरि सिंह को एक चेतावनी भरा खत भेजा, जिसमें पाकिस्तान को चुनने को कहा गया था। इसके बावजूद भी महाराज हरि सिंह चुप्पी बनाए रखे। वो सिंतबर का महीना था, जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। इसकी जानकारी हरि सिंह को भी हो गई थी।
POK सहित भारत का नक्शा
सरदार को लिखे पत्र में नेहरू की भविष्यवाणी सच हुई
27 सितंबर 1947 को सरदार पटेल को एक पत्र में नेहरू लिखते हैं- ‘कश्मीर की परिस्थिति और बिगड़ रही है। मुस्लिम लीग बड़ी संख्या में कश्मीर में घुसने की तैयारियां कर रही है। शीतकाल में कश्मीर का संबंध बाकी भारत से बिल्कुल कट जाएगा। उससे पहले ही कुछ कर लिया जाना चाहिए।’ नेहरू की बात सच साबित हुई। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के फ्रंटियर प्रॉविंस के करीब 5 हजार कबायली ट्रकों में भरकर कश्मीर में आ गए। उन कबायलियों को पाकिस्तानी सेना के जवान लीड कर रहे थे। तीन दिनों तक हमलावरों ने गैर-मुस्लिमों का नरसंहार किया और उनके घरों को लूटा और जला दिया। हजारों की संख्या में उनकी औरतों का रेप हुआ और उनका अपहरण किया गया। कई इलाकों पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया।
भागने लगी थी पाकिस्तानी सेना
इस बीच 26 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह सुरक्षित ठिकाने की तलाश में श्रीनगर से जम्मू आ गए। जम्मू पहुंचने के बाद 26 अक्टूबर 1947 को हरि सिंह ने कश्मीर के भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस विलय पत्र के खंड 4 में लिखा है- महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की घोषणा की है। इसके अगले दिन भारतीय सेना ने कश्मीर में मोर्चा संभाल लिया और घाटी को बचाने के लिए पूरी ताकत से युद्ध लड़ा। कुछ ही दिनों में पाकिस्तानी सेना के पांव उखड़ने लगे। 1 साल 2 महीने और 5 दिन चली जंग के दौरान भारत लगातार आगे बढ़ रहा था, लेकिन सेना की हालत खराब थी।
नेहरू की वजह से रुकी जंग तो बन गया POK
इसी बीच 1 जनवरी 1948 को भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया। 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम हो गया। भारत के हिस्से में जितना भाग था वो भारत के पास ही रहा और पाकिस्तान ने जिस हिस्से पर कब्जा किया वो हिस्सा पाकिस्तान के पास। दोनों देशों के बीच सीमा बनी, जिले लाइन ऑफ कंट्रोल या LOC कहा गया। नेहरू की आलोचना में कहा जाता है कि जब कश्मीर में हमारी सेना जीत रही थी। पंजाब का इलाका आते ही सीजफायर कर दिया गया। अगर सीजफायर 3 दिन लेट होता तो पाक अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा होता।